गुरुवार, 15 सितंबर 2016

आज अगर हम बकरे होते



आज अगर हम बकरे होते .........बक रे होते बक .... रे होते गरदन नहीं सलामत होती .....धड़ पे शीश धरे न होते .. आज अगर हम बकरे होते .. रहे गाय से सीधे सादे हमको लोग बताते प्यादे . क्या करते हम हैं मजूर के बेटे, नहीं कोई शहजादे . हमको कौन बचाने आता, सीधे अगर खड़े न होते . आज अगर हम बकरे होते .. मैं मैं बहुत बार चिल्लाये गोल बनाकर भी हम आये लेकिन पीछे चले थे जिनके वही बधिक के घर ले आये 

ऐसा वक्त बुरा न आता, रहबर अगर बुरे न होते . आज अगर हम बकरे होते .. अच्छे दिन की नहीं चाह है चोट पड़े पर नहीं आह है वो तो खोज खोज कर मारें किस्मत अब तक बचे वाह है 
अब तक निपट गए हम होते, जो नज़रों से परे न होते .
आज अगर हम बकरे होते ..



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