था समंदर का गुमां नालों में गुम होता गया
खुद को कहता था सिकंदर हार कर रोता गया
पाँव तो पटके बहुत मर्जी का कुछ न हो सका
बदजुबानी के मगर कुछ बीज वो बोता गया .
बीज ये उगकर कटीले झाड़ बन लहरायेंगे
राह जो सीधी चलेगा उसको ये उलझायेंगे .
सबसे पहले ये कटीले झाड़ जड़ से फूंक दो
वरना आगे बढ़ने के रस्ते नहीं खुल पायेंगे .
मंदिर-मस्जिद, ईद -दिवाली, ढूंढ ढूंढ कर पूज रहे,
है चुनाव का मौसम नेता घर घर जाकर बूझ रहे
पर चुनाव के बाद ये नेता कहीं नजर न आयेगें
न सोचेंगे न पूछेंगें हम किस गम से जूझ रहे
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