सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

आप की महफ़िल में हम बोलें तो बोलें किस तरह ?
लोग मुँह को देखते हैं, और फिर मुँह खोलते .

अपनी तो आदत यही जो दिल में आया कह दिया
हम नहीं बनिया जो पहले तोलते फिर बोलते .

सिर्फ गुटरगूँ करेगें जो कबूतर कैद हैं
गर खुला पिंजरा मिले तो पंख ये भी खोलते .

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें