जहाँ सोच पर बैठा पहरा
दिल में रहता है डर ठहरा
वहीँ नेह का दीप जलायें
जहाँ दिखे अँधियारा गहरा .
कुछ तो अँधियारा कम होगा
कुछ कहने का भी दम होगा .
आज नहीं छोड़ी फुलझड़ियाँ
तो कल हाथों में बम होगा.
बच्चों फुलझड़ियों से खेलों
और बड़ों का गुस्सा झेलो
डरो नहीं मुस्काकर बोलो
आओ बाबा तुम भी ले लो .
किलकारी में प्यार छुपा है
जीवन का उपहार छुपा है
औ वैरागी देख यहाँ पर
खुशियों का संसार छुपा है.
गृहस्थ काज से क्यों भागे हो ?
क्यों तुम त्यागे हो समाज को ?
क्या अतीत में ढूंढ रहे हो ?
देख रहे क्यों नहीं आज को ?
वक्त नहीं पीछे जाता है
हठी हार कर रह जाता है.
हाँ समाज भी जो चुप रहता
घाव बहुत गहरे खाता है .
इतने गहरे घाव न देना
सदियों दर्द पड़े जो सहना
हम न कहीं भी जाने वाले
तुम को यहीं पड़ेगा रहना .
जब रहना है साथ यहीं पर
क्यूँ बिगड़े फिर किसी बात पर ?
मुस्काओ तो तनिक प्यार से
बल क्यूँ डाले हुए माथ पर ?
देखो जब हम मुस्काते हैं
प्यार भरे दिल मिल जाते हैं
सूखे ठूंठ काष्ठ पर भी तब
फूल सुहाने खिल जाते हैं .
कोयलिया को गाने भी दो
गाकर उसे रिझाने भी दो .
पतझर कोई नहीं चाहता है
तुम बसंत को आने भी दो.
दिल में रहता है डर ठहरा
वहीँ नेह का दीप जलायें
जहाँ दिखे अँधियारा गहरा .
कुछ तो अँधियारा कम होगा
कुछ कहने का भी दम होगा .
आज नहीं छोड़ी फुलझड़ियाँ
तो कल हाथों में बम होगा.
बच्चों फुलझड़ियों से खेलों
और बड़ों का गुस्सा झेलो
डरो नहीं मुस्काकर बोलो
आओ बाबा तुम भी ले लो .
किलकारी में प्यार छुपा है
जीवन का उपहार छुपा है
औ वैरागी देख यहाँ पर
खुशियों का संसार छुपा है.
गृहस्थ काज से क्यों भागे हो ?
क्यों तुम त्यागे हो समाज को ?
क्या अतीत में ढूंढ रहे हो ?
देख रहे क्यों नहीं आज को ?
वक्त नहीं पीछे जाता है
हठी हार कर रह जाता है.
हाँ समाज भी जो चुप रहता
घाव बहुत गहरे खाता है .
इतने गहरे घाव न देना
सदियों दर्द पड़े जो सहना
हम न कहीं भी जाने वाले
तुम को यहीं पड़ेगा रहना .
जब रहना है साथ यहीं पर
क्यूँ बिगड़े फिर किसी बात पर ?
मुस्काओ तो तनिक प्यार से
बल क्यूँ डाले हुए माथ पर ?
देखो जब हम मुस्काते हैं
प्यार भरे दिल मिल जाते हैं
सूखे ठूंठ काष्ठ पर भी तब
फूल सुहाने खिल जाते हैं .
कोयलिया को गाने भी दो
गाकर उसे रिझाने भी दो .
पतझर कोई नहीं चाहता है
तुम बसंत को आने भी दो.
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