शुक्रवार, 31 मार्च 2017

वो एक शेर सही,  बाघ सही, नाग सही
शहर को फूंकने वाली भंयकर आग सही
मुझे तो प्यार के नगमें ही गुनगुनाने हैं
तोहमते लाख सही,बंदिशे अल्फाज सही .


मांस पे पाबंदी है रोमांस पे पाबंदी है
योगी तेरे राज में हर साँस पे पाबंदी है


उर्दू मेरी माँ है जिसका पैरहन [ख़त ] विदेशी है
इसलिए वो थोडा जुदा दिखती है
लेकिन इससे उसकी खूबसूरती में चार चाँद भी लग गए हैं
लेकिन इससे ना उससे लगाव कम हो सकता  है
 न उसकी इज्जत कम हो सकती है|


नाम से पहले मोहम्मद, बाद से अहमद हटा
हो गया तू राष्ट्रवादी, फिर भी तहमद है फटा|
एक जोगी जांगिया पहने हुए घूमा करो
उससे शायद हो गुजर तस्बीह टोपी भी हटा .


कपडे तो नहीं हैं जिन्हें  हर रोज बदल लूँ
बरसों से मेरी सोच का आईना हैं अल्फाज .




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