रविवार, 5 मार्च 2017

मेरे देश से वापिस जाओ




अमेरिका से लगातार भारतीयों की हत्या की खबरें आ रही हैं लेकिन जरा जरा सी बात पर आसमान सिर्फ पर उठा लेने वाले कथित राष्ट्रवादी मौन हैं .यही नहीं तमाम टी वी चैनल भी मौन हैं. ये कथित राष्ट्रवादी या तो कश्मीर के नौजवानों और दिल्ली के छात्रों को कोसने में लगे हैं या यू पी में घूम रहे दो लड़कों को घेरने में लगे हैं .असल में इन्हें  खतरा भारत के युवाओं से ही है क्योंकि भारत के नौजवान इनकी नफ़रत की राजनीति के खतरे को अच्छी तरह देख समझ रहे हैं. वो ये जानते हैं कि इस अंध राष्ट्रवादी राजनीति से नेता तो अपनी कुर्सी पा सकते हैं लेकिन भारत के नौजवान रोजगार नहीं पा सकते हैं .ज्यादा खतरा ये है कि वो अपने उपलब्ध रोजगार को भी गवां  देंगें. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रैम्प की नीति और नियत वही है जो भारत में संघ  की विचारधारा है. अगर ये विचारधारा भारत के हित में हो  सकती  है तो फिर  डोनाल्ड  ट्रैम्प की  'अमेरिकी प्रथम' की नीति के अमरीका के हित में होने में संदेह नहीं होना चाहिए. उनके इस अधिकार पर भी सवाल नहीं उठाना चाहिए कि वे अमेरिकी नागरिकों के रोजगार की रक्षा के लिए आप्रवासियों को अमेरिका से खदेड़ दें .और अगर वो राजी से न जाएँ तो उन्हें क़त्ल कर दें.क्योंकि अमेरिका पर एकमात्र अधिकार अमेरिकियों का है.
 दक्षिणपंथियों द्वारा वामपंथियों को लगातार इस बात के लिए धिक्कारा  जाता है कि वे वे राष्ट्र या देश को सर्वोपरि नहीं मानकर सारी दुनिया के मजदूरों की बात करते हैं.उन के विचार से उन्हें भारत के नागरिकों की ही बात करनी चाहिए तभी वे सच्चे देशभक्त हो सकते हैं.लेकिन क्या अमेरिका में यही संकीर्ण देशभक्ति नहीं भड़काई जा रही है ? अगर देशभक्ति का ये रंग अच्छा है तो फिर भारतीयों या अन्य किसी भी आप्रवासी के मारे जाने का कोई शोक क्योंकर हो सकता है ? लेकिन देशभक्ति का भाव अगर इतना ही संकीर्ण है तो फिर इसके विरुद्ध खड़े होने का सही वक्त आ गया है .और लोग इसके विरुद्ध खड़े हो रहे हैं भारत में भी और अमेरिका में भी .जो लोग इस अंधराष्ट्रवाद के विरुद्ध लड़ रहे हैं वो न कोई धर्म देख रहे हैं ,न रंग देख रहे हैं ,न भाषा, न क्षेत्र .वो लड़ रहे हैं क्योंकि उन का विश्वाश है कि नफ़रत की ये राजनीति मानवता के विरुद्ध है. धर्म, जाति, वर्ण ,नस्ल, क्षेत्र या भाषा के आधार पर मानव से घृणा नहीं की जानी चाहिए  और जो ऐसा कर रहे हैं वो दुनिया के कितने भी शक्तिशाली लोग क्यों न हों वो मानवता के दुश्मन हैं. मानवता को बचाना है तो ऐसे सिरफिरों दुश्मनों के विरुद्ध सीना   तान कर खड़ा होना ही होगा. इसलिए आज नौजवान इन के विरुद्ध उठ  खड़े हुए हैं,  इन नायकों का नाम गुरमेहर हो सकता है या इआन ग्रीलट  हो सकता है बस उसको  पहचाने  की जरुरत    है .ये हमारे दौर    के नये    नायक   हैं जिन्हें   हम   ठीक   से पहचान   नहीं पा रहे हैं .हमारी   दिक्कत   ये है कि हम   अभी भी गए  गुजरे  नेताओं  में  अपना  भविष्य तलाश रहे  हैं .क्या इन नेताओं को आपके भविष्य की चिंता है ? इन्हें आपके भविष्य की चिंता नहीं है इन्हें अपनी कुर्सी की चिंता है .अगर इन्हें आपके भविष्य की, आपके रोजगार की, आप के आत्म सम्मान की थोड़ी भी  चिंता होती तो ये आज अमरीका को  ललकार रहे होते न कि चुनाव जीतने  के लिए गधे घोड़े गिन रहे होते .
  हम पूछते हैं कि जो अमेरिका मुक्त व्यापर का डंडा उठाये दुनिया के सारे देशों को धमकाता रहा है वो किस अधिकार से आउट सोर्सिंग को बंद करने  की बात करता है? वो किस अधिकार से आप्रवासी प्रतिभाओं और मेहनतकशों को खदेड़ने की बात करता है ? क्या उसकी इस हरकत के जबाब में उससे सामान के आयात निर्यात पर पाबंदी नहीं लगा देनी चाहिए ? क्या अमेरिका विकासशील  देशों के प्रतिबन्ध को झेल सकेगा ? क्या गैर अमेरिकी विकसित देश जापान ,चीन ,रूस फ्रांस ,जर्मनी, इंग्लैण्ड आदि इस स्थिति का वयापारिक और राजनीतिक फायदा  नहीं उठाएंगे  ? अमेरिका को सर्वोपरि मानने वाले डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां अमेरिका को अलग थलग तो करेंगी ही उसे कमजोर भी कर देंगी . इस लिए किसी को भी इन अंधराष्ट्रवादी ताकतों से डरने की जरुरत नहीं है उन से लगातार लड़ने की जरुरत है. इनका पतन निश्चित है .

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