शनिवार, 4 मार्च 2017

हुसैन हैदरी




सड़क पर सिगरेट पीते वक़्त
जो अजां सुनाई दी मुझको
तो याद आया के वक़्त है क्या
और बात ज़हन में ये आई
मैं कैसा मुसलमां हूं भाई?

मैं शिया हूं या सुन्नी हूं
मैं खोजा हूं या बोहरी हूं
मैं गांव से हूं या शहरी हूं
मैं बाग़ी हूं या सूफी हूं
मैं क़ौमी हूं या ढोंगी हूं

मैं कैसा मुसलमां हूं भाई?

मैं सजदा करने वाला हूं
या झटका खाने वाला हूं
मैं टोपी पहन के घूमता हूं
या दाढ़ी बड़ा के रहता हूं
मैं आयत कौल से पढ़ता हूं
या फ़िल्मी गाने रमता हूं
मैं अल्लाह अल्लाह करता हूं
या शेखों से लड़ पड़ता हूं?

मैं कैसा मुसलमां हूं भाई?

दक्कन से हूँ ,  यूपी से हूँ
भोपाल से हूँ दिल्ली से हूँ
कश्मीर से हूँ गुजरात से हूँ
हर ऊंची नीची जात से हूँ

मैं ही हूँ जुलाहा मोची भी
मैं  डॉक्टर  भी हूँ दर्ज़ी भी
मुझमे गीता का सार भी है
एक उर्दू का अख़बार भी है

मेरा एक महीना रमज़ान भी है
मैंने किया तो गंगा स्नान भी है
मैं अपने तौर से जीता हूँ
दारू सिगरेट भी पीता हूँ

कोई नेता मेरी नस में नहीं
मैं किसी पार्टी के बस में नहीं।
ख़ूनी दरवाज़ा मुझमे है
इक भूलभलैया मुझमे है

मैं बाबरी का एक गुम्बद हूँ
मैं शहर के बीच में सरहद हूँ
झुग्गियों में पलती ग़ुरबत मैं
मदरसों की टूटी सी छत में मैं

दंगों में भड़कता शोला मैं
कुर्ते पर खून का धब्बा मैं
मंदिर की चौखट मेरी है
मस्जिद के किबले मेरे है

गुरूद्वारे का दरबार मेरा 
यीशु के गिरजे मेरे हैं
सौ में से चौदह हूँ
चौदह ये कम न पड़ते हैं
मैं पूरे सौ में बसता हूँ
पूरे सौ मुझ में बसते हैं

मुझे एक नज़र से देख न तू
मेरे एक नहीं सौ चेहरे हैं
सौ रंग के हैं किरदार मेरे
सौ रंग में लिखी कहानी हूँ
मैं जितना मुसलमाँ हूँ भाई
मैं उतना हिंदुस्तानी हूँ

मैं हिंदुस्तानी मुसलमाँ हूँ भाई
मैं हिंदुस्तानी मुसलमाँ हूँ .
         ------- हुसैन हैदरी

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