छत्तीस गढ़ में नक्सली भी मारे गए हैं.लेकिन उन की मौत पर न कोई हर्ष है न कोई शोक| जैसे उनका जीना मरना किसी मनुष्य का जीना मरना नहीं है| सच पूछो तो -
इस मरने और मारने से दिल ऊब गया,
समता समानता का सपना तो डूब गया.
अब अपने सारे सपने धुन्धले धुन्धलें हैं,
लड़ने वाले दिखते वैचारिक कंगलें हैं.
रक्तिम है रात, सुबह भी दिखती रक्तिम है
ये दुर्घटना भी पहली है, न अंतिम है
ऐसी घटना को हमें रोकना ही होगा
सब ठीक रहे ये हमें सोचना ही होगा.
इस मरने और मारने से दिल ऊब गया,
समता समानता का सपना तो डूब गया.
अब अपने सारे सपने धुन्धले धुन्धलें हैं,
लड़ने वाले दिखते वैचारिक कंगलें हैं.
रक्तिम है रात, सुबह भी दिखती रक्तिम है
ये दुर्घटना भी पहली है, न अंतिम है
ऐसी घटना को हमें रोकना ही होगा
सब ठीक रहे ये हमें सोचना ही होगा.
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