निहारिका नील कमल अरोरा - हे हे हे हे ये सिर्फ वाह वाही बटोरने का जरिया बहरहाल, मैंने तो अब तक जिस किसी दुर्दांत कवि की आलोचना की है उसने मुझे अन फ्रेंड या ब्लाक ही किया है ,
प्रियंका सिंह - एक समझदारीपूर्ण स्टेटस......सहमत हूँ...!
अमरनाथ 'मधुर '- आप दुर्दांत कवियों की आलोचना करें ये भी क्या कम हिम्मत की बात है ? अब इस सुकृत्य का अंत दुखांत होता है तो होने दो .
ध्रुव गुप्ता - सहमत हूँ आपसे , मधुर जी !
सुधीर कुमार सोनी - अमरनाथ जी बहुत ही सुंदर ,बिना कहे खे बहुत कुछ कह दिया आपने धन्यवाद
एस .यु . सैयद - मधुर जी , सहमत तो हूँ ही , बधाई साथ में , लेकिन सच कड़वा होता है , कुछ को मिर्ची लगे तो मई (आप ) क्या करें ?
अनूप अवस्थी - मधुर जी आपकी बातों से मैं 100% सहमत हूँ .
शकील अहमद खान सर मैंने तो इसी फेस बुक पर बेहतरीन कवितायें और अभिव्यक्तियाँ पढ़ी हैं .और उम्दा लेखकों की एक लम्बी लिस्ट भी बन गयी है जिन्हें पढना मन को सुकून देता है जिनके सामाजिक सरोकारों से प्रेरणा मिलती है ..और फिर यह एक तरह से लोकमंच सरीखा है जिसमे वह लोग भी लिख सकते हैं जो पेशेवर नहीं हैं .कुंठित होकर किसी भी भविष्य के माद्ध्यम की आलोचना नहीं करनी चाहिए .मेरा तो ऐसा मानना है.
शैल त्यागी बेज़ार - ये प्रचार अधिकांशतः उन लोगों द्वारा किया जा रहा है जो कविता /शैरी को अपनी जागीर समझते हैं , वे ये बर्दाश्त नहीं कर पाते की लायिक और कमेन्ट के मामले में उन्हें कई बार अविख्यात लेखकों से पीछे खड़ा होना पड़ता है .
राम किशोर उपाध्याय आपके विचार से सहमत हूँ ,,,,,,,,,,
चन्द्र भानु - अति सुन्दर मधुर जी. अफ़सोस इतना बड़ा घोटालो लोगो की आलोचनाओ से बचा रहा
या कह सकते है की लोगो की नज़र से बचा रहा. फेसबुक सही और इमानदार माध्यम है जहा आप जोड़ तोड़ बहुत कम कर सकते है. फेसबुक का आविस्कर कई लोगो की कलई खोल देगा.
अमरनाथ मधुर - फेसबुक एक कसोटी है. लेकिन नकली चमक दमक वाले इस पर कसे जाने से कतराते हैं .उन्हें पता है कि उनकी असलियत सामने आ जायेगी .
चन्द्रभानु - जी बिलकुल ये एक कसौटी है
20 hours ago · Like · 1
Ashok Verma पूर्णतया सहमत हूँ।
डॉ. हीरालाल प्रजापति - बहुत ही अवलोकन के बाद आपने यह बात लिखी है और जो बहुत हद तक सही है.....सबसे अच्छी बात ये है कि यहाँ कवि को न प्रकाशन का खर्च है और न पाठक के पढ़ने की मजबूरी.....यदि आपकी रचना मे दम है तो प्रशंसा मिलेगी वर्ण लोग लाँघ कर चल देंगे ......किन्तु ''कुंठित'' कहना अवश्य ही ज्यादती है......खैर मैं अपनी लिंक यहाँ दे रहा हूँ जब कभी समय मिले तो पढ़कर बताइएगा कि मैं कितना कुंठित हूँ............कितना कवि हूँ ?आपका लेख विचारणीय है ,उपयोगी है ,बधाई ......कृपया मुझे पढ़कर कभी भी जब भी फ्री हों बताइएगा क्योंकि बक़ौल ग़ालिब ''न सताइश की तमन्ना न सिले की पर्वा गर नहीं है मेरे अशआर मे मानी न सही ''............यह भी एक सच है .......................http://www.drhiralalprajapati.com/
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