शनिवार, 15 जुलाई 2017

भारत ,चीन और भूटान



भारत ,चीन और भूटान की सीमा पर डोकलाम पठारी क्षेत्र में जिसे चीन ड़ोंगलोंग कहता है भारत और चीन की सेनायें आमने सामने डटी हैं | चीन इस क्षेत्र में सड़क निर्माण कर रहा है | भारत इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानते हुए इसका विरोध कर रहा है | चीन का कहना है ये उसका इलाका है वह कुछ भी कर सकता है | भारत और भूटान चीन के अधिकार को नकारते हैं | इसलिए भूटान की मांग पर और अपने दूरगामी हितों को ध्यान में रखकर भारतीय फौजें चीन के कब्जे को कब्ज़ा करने से रोकने पहुँच गयी हैं | चीन अपनी ताकत के गरूर में पीछे हटने को तैयार नहीं है| वो सोचता है कि भारत झुकेगा और अपनी फौजें वापिस बुला लेगा | लेकिन भारत ने ऐसा नहीं किया है | आज वह रूस, जापान, फ्रांस जैसे देशों से गहरे रिश्तें रखते हुए अमेरिका और इजराईल जैसे गैर पारंपरिक मित्र देशों से भी प्रगाढ़ सम्बन्ध बनाने में सफल हो रहा है जबकि चीन की धोंस पट्टी से दुनिया के छोटे बड़े सभी मुल्क परेशान हैं | उसके रिश्ते किसी से भी बहुत मधुर नहीं हैं | शायद इसी स्थिति का फायदा उठाते हुए भारत ने चीन के सामने सीना तान दिया है | भारत के सैनिक डोकलाम पहाड़ी पर तम्बू गाड़कर बैठ गए हैं | ऐसी स्थिति में चीन के सामने दो ही रास्ते थे कि या तो वो अपने सैनिकों को पीछे हटा ले और सड़क निर्माण का कार्य रोक दे या भारत के सामने डट जाए | पीछे हटने में तो उसे अपनी हेठी महसूस होती इसलिए उसने दूसरा रास्ता चुना है | चीनी सैनिक भी भारतीय सैनिकों के सामने तम्बू गाड़कर बैठ गए हैं | ये ऐसा इलाका नहीं हैं जहां हमेशा तम्बुओं में रहा जाए लेकिन अब हालत ये है कि दोनों देशों के सैनिकों को वहाँ रहना ही पड़ेगा |
ये स्थिति दोनों देशों के अदूरदर्शी, महत्वाकांक्षी और जल्दबाज नेताओं की हठधर्मिता के कारण पैदा हुयी है | भारत और पाकिस्तान के बीच पहले से ही बहुत तनाव है |ऐसी स्थिति में वह चीन के साथ सीमा संघर्ष नहीं करना चाहेगा | चीन भी युद्ध के लिए तैयार नहीं है |उसकी रणनीति अपने पडौसियों को दाब धोंस में रखने की है | उसका सारा ध्यान अपनी आर्थिक प्रगति पर है | अगर भारत के साथ युद्ध होता है तो भारत का बड़ा बाजार उसके हाथ से निकल सकता है जिसका चीन को युद्ध से भी बड़ा नुक्सान होगा | चीन ऐसा कभी नहीं चाहेगा | क्यूंकि ऐसा अगर हुआ तो वह आर्थिक महाशक्ति बनने से चूक जाएगा जबकि निकट भविष्य में वह संसार कि बड़ी आर्थिक,राजनीतिक और सैन्य शक्ति बनने की राह पर सरपट दौड़ रहा है | आज उससे ना अमेरिका उलझता है ना रूस उलझता है दुनिया के बाकी देशों की तो बिसात ही क्या है ?लेकिन कूटनीति में वो अक्सर अकेला पड़ जाता है |युद्ध में उलझकर वो अपनी स्थिति को और खराब नहीं करना चाहेगा |
अत: ये तो स्पष्ट है कि निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच कोई युद्ध नहीं होने वाला है |लेकिन दोनों देशों के युद्धोन्मादी लोग माहौल खराब करने पर उतारू हैं | इसका असर दोनों देशों के राजनीतिक आर्थिक संबंधों पर चाहे कुछ कम पड़े लेकिन सीमा पर तनाव बना रहेगा |इस स्थिति से बाहर निकलने की कोई राह दोनों सरकारें कब खोज पाएंगी इस सम्बन्ध में कुछ कहा नहीं जा सकता है | ऐसी स्थिति में मेरा सुझाव है कि भारत पाकिस्तान के बाघा बोर्डर की तरह डोकोलाम में भी एक फाटक का निर्माण कर दिया जाए या अपने अपने तम्बूओं के सामने के मैदान में ही दोनों देशों के फौजी सुबह झंडा रोहण और शाम को झंडा अवरोहण का काम शुरू कर दें | इससे दोनों देशों के फौजियों और नागरिकों को अपने देश के नारे लगाने का मौका मिलेगा | देशभक्ति के प्रदर्शन का इससे बढ़िया तरीका दूसरा कोई नहीं हो सकता है |ना गोली चले ना गोला फटे और भारत चीन जिंदाबाद होते रहेगा | यूँ अगर तनाव कम हो जाए तो हिन्दी चीनी बाई बाई का नारा भी बुलंद किया जा सकता है | लेकिन भारत तो बाई बाई सुनते ही बिदक जाता है | उन्नीस सौ बासठ के जख्मों की सीवन उधड जाती है | खून चूने लगता है| आँखों में भी खून उतर आता है |
बासठ में ठुकाई भी हुयी और जमीन भी चली गयी | इससे बड़ा दर्द भला कुछ हो सकता है ? जहां खेत की मेड को इधर उधर करने को लेकर क़त्ल हो जाते हों वहाँ चौदह हजार मील क्षेत्र छोड़ा जा सकता है ? कभी नहीं छोड़ा जा सकता है | ये क्षेत्र ही टुकड़ों में बंटकर किसान का खेत कहलाते हैं | और किसान तो जानते हो 'पुर्जा पुर्जा कट मरे तूँ ना छोड़े खेत' | लेकिन चीन अगर भाई मानता है तो ये रिश्ता ख़त्म कैसे हो सकता है | भाई का रिश्ता कोई तोड़ने से टूटता है ? भाई अगर थोडा ज्यादा भी खेत जोत ले तो भाई ही रहता है | दूसरा भाई ये सोच लेता है कि कोई बात नहीं जमीन है तो अपने भाई के ही पास किसी गैर ने तो नहीं ले ली है ? तकलीफ तब होती जब सात समंदर पार से कोई आकर बैठ जाता | जब अपना न्यायोचित अधिकार नहीं मिलता है तो समझदार आदमी ऐसे ही खुद को समझाया करता है जबर से लड़ता भिड़ता नहीं है | सीमा विवाद भी इसे ही सुलझते हैं | जबर कभी अपना कब्ज़ा नहीं छोड़ता है | अगर कभी छोड़ता भी है तो तभी छोड़ता है जब उसे अपने से बड़े से कुछ खतरा दिखाई देता है |या अपनी अंदरूनी मुसीबतों से पार पानी होती है |तब वह अपने पडौसियों से युद्धविराम कर लेता है और थोडा बहुत क्षेत्र छोड़ भी देता है | चीन ने ऐसा ही क्या है | लेकिन अब चीन के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं है| उसे किसी से कोई खतरा नहीं है और अंदरूनी भी कोई समस्या नहीं है | जबकि भारत के लिए कश्मीर की समस्या नासूर बनी हुयी है | भारत को चाहिए कि वो पाकिस्तान के साथ ले दे के कश्मीर की समस्या हल कर ले तभी वह चीन से आमने सामने डटकर बात कर सकता है | भविष्य में हर क्षेत्र में उसे किसी और देश से नहीं चीन से ही चुनौती मिलने वाली है| अगर वो पाकिस्तान के साथ उलझा रहा तो वो चीन की चुनौतियों का सामना नहीं कर पायेगा | हर जगह अति राष्ट्रवाद के उन्माद से काम चलने वाला नहीं है | भारत में उन्मादी अतिराष्ट्रवादी देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं | शांति, स्थिरता और सोहार्द आर्थिक प्रगति की पहली शर्त है जिनकी आज भारत को बहुत जरुरत है | आज देश को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और मजबूत बनाना है | चीन को पहली शिकस्त उद्योग और व्यापार में देने की जरुरत है |यदि हम इसमें कामियाब होते हैं तो अपने संसाधनों को सैन्य शक्ति बढाने में अधिकाधिक इस्तेमाल कर सकेंगे |अगर आर्थिक रूप से पंगु रहकर हम सैन्य खर्च बढाते हैं तो बिना युद्ध किये ही हम बरबाद हो जायेंगे |एक कश्मीर समस्या ने ही हमें आर्थिक रूप से लकवाग्रस्त बना दिया है ऐसे में चीन के साथ संघर्ष हमें कहीं का ना छोड़ेगा | हम अमेरिका या रूस के भरोसे संघर्ष कर तो सकते हैं लेकिन उसका खामियाजा हमें बहुत भुगतना ही पड़ेगा | इसलिए हिंदी चीनी भाई भाई, हाथ मिलाओ छोड़ लड़ाई |

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