शुक्रवार, 9 मार्च 2018

मूर्ति भंजन


    मूर्ति भंजन पर सर फुटैव्वल जारी है |लम्पट लोगों ने त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़ी  तो तमाम मुँहबली लेनिन को तानाशाह ,आतंकवादी और विदेशी कहकर मूर्ति भंजकों की हौसलाआफजाई में खड़े हो गए| लेकिन जब उत्साही भक्तों ने पेरियार और अम्बेडकर की मूर्ति को भी क्षति पहुंचाई और दूसरी ओर उनके विरोधियों ने प० श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मूर्ति के चेहरे पर कालिख पोत दी तो उन्हें समझ आ गया कि उनकी  लगाई आग उनके घर को भी ख़ाक कर सकती है | उन्होंने आनन् फानन  में मूर्तिभंजन की घटनाओं पर रोक लगाने के निर्देश दिए और डा० अम्बेडकर की नयी मूर्ति को टूटी हुयी मूर्ति की जगह तुरंत स्थापित कर दिया | पहले दिन जो प्रवक्ता बाँहें चढ़ाये हुए थे अब बड़ी विनम्र भाषा में बोल रहे हैं कि  हम मूर्ति तोड़े जाने कि निंदा करते हैं | क्यूँ जी ड़ॉ० अम्बेडकर की मूर्ति ही क्यूँ लगाई अगर आप मूर्ति भंजन के विरुद्ध हैं तो लेनिन की मूर्ति  क्यों नहीं लगाते हैं ?क्या लेनिन की मूर्ति तोड़े जाने से लेनिन के अनुयायियों की भावना को ठेस नहीं पहुंची है ? अच्छा आप मूर्ति ना लगाएं हमें मूर्तियों की बहुत दरकार नहीं है लेकिन आप उन सब नेताओं के खिलाफ तो कार्यवाही कीजिये जिन्होंने इस उपद्रव को सही बताने का अपराध किया है ओर ुद्रवी तत्वों को दुष्कृत्य के लिए उकसाया है |
 वैसे अगर गौर से देखा जाए तो ये मूर्तियां सबसे ज्यादा किस काम आती हैं |जन्म दिन मरण दिन के सिवाय तो इन्हें कोई पूछता नहीं है,इन्हें कोई पोंछता भी नहीं है | हाँ कभी कभी समाज में विग्रह फैलाने के लिए उपद्रवी लोग जरूर इन्हें तोड़ फोड़कर या इन पर कालिख पोतकर या कभी कभीइनके गले में  जूतों की माला पहनाने के लिए इनका इस्तेमाल कर लेते हैं| बाकी किसी को इनसे कुछ मतलब नहीं है | इसके अलावा ये मूर्तियां सबसे ज्यादा कौवों के बीट करने के काम आती हैं | कौवें और दूसरे पक्षी उड़ान भरते हुए मूर्तियों के सिर पर लैंडिंग करते हैं और वहीँ मल मूत्र विसर्जन करते हैं | आदमियों ने कभी पशु पक्षियों के जज्बातों का ध्यान नहीं रखा है इसलिए पक्षी भी आदमियों की भावनाओं का रत्ती भर ध्यान नहीं रखते हैं |मूर्ति बाबा साहेब की हो या महात्मा गांधी की ,लेनिन की हो या श्यामाप्रसाद मुखर्जी की वो बिना किसी भेदभाव के समान रूप से उनके सिर पर बीट करते रहते  हैं | वो जो गंगों जमुनी तहजीब वाले हवाले देते हैं कि कभी  मंदिर  पर जा बैठे कभी मस्जिद पर जा बैठे वो आकर देख लें असली सेकुलरिज्म यहाँ मूर्तिओं के सिर पर शोभायमान होता  है |
होना तो ये चाहिए था कि हम सरकार से माँग करते कि मूर्तियों के ऊपर बैठने वाले पंछियों को उड़ाने के लिए चौकीदार नियुक्त करे |या मनरेगा योजना में ही ये काम शामिल कर ले | आखिर अपने खेतों से पंछी उड़ाने का काम तो पहले से ही मनरेगा में शामिल है उसमें मूर्तिओं से पंछी उड़ाने का काम और शामिल कर लिया जाए | लेकिन हमने कोई माँग  ऐसी की नहीं तो सरकार ने कहा  कि हम तुम्हें  नौकरी नहीं दे सकते हैं जाओ तुम पकौड़े तलने का स्वरोजगार करो | इधर हम पकौड़े तलने में लग गए और उधर भक्त मूर्तियां तोडने के रोजगार में लग गए | उन्हें तोड़ने का पुराना तजुर्बा है |वो पहले बाबरी मस्जिद तोड़ चुके थे |फ्रेशर को आजकल काम कौन देता है? भक्तों   पुराना तजुरबा काम आया और उन्होंने फुर्ती के साथ लेनिन की मूर्ति तोड़ डाली |लेकिन वो भूल गए की मूर्ति तोड़ देंगें तो मलबा इधर उधर बिखरेगा | कौवे काँव काँव करते हुए दूर दूर तक उड़ान भरेंगे और वे बीट भी दूर दूर तक फैलाएंगे |अब कौवे कांव कांव कर रहे हैं ,बीट जहाँ तहाँ बिखर रही है | समाज के हिट चिंतक  उसे बटोरने में लगे हैं | लेकिन इसके साथ जो हिंसा और आगजनी हो रही है वो वाकई बहुत खतरनाक है | इसके लिए मुझे तो  सिर्फ इतना ही कहना है कि--
' मेरे घर को जलाओ शौक से इसका ना गम कोई
 मुझे ये फ़िक्र उसकी जद में तेरा आशियाना है |'

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