गुरुवार, 8 मार्च 2018

' अभी लड़ाई जारी है '



टी वी डिबेट पर पता नहीं कैसे कैसे वामपंथी आकर बैठ जाते हैं | सारे थके हुए, सारे चुके हुए | ठीक से ना अपनी बात रख पाते हैं और ना विपक्ष का प्रतिवाद कर पाते हैं | सुनीत चोपड़ा तो पता नहीं क्या बड़बड़ाते हैं कुछ समझ में ही नहीं आता है |क्या इनके पास कोई पढ़ा लिखा युवा वक्ता नहीं है या ये जान बूझकर युवाओं को आगे नहीं आने दे रहे हैं |एक दो युवा वक्ता आये भी तो उनका हाल भी कुछ ठीक नहीं है |वो ना ही आएं तो अच्छा है | माना आज संघ भाजपा के वक्ताओं का हौसला चहुँतरफा  जीत  से बुलंद है लेकिन ये ना भूलें  कि उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने में  बड़ी मेहनत की है | हर वामपंथी स्वयं के सामने दूसरे वामपंथी को कमतर और अनपढ़ मानता है और सामने वाले  को बहस  में पराजित  करके   ही मानता है |लेकिन इनकी सारी समझ संघ वालों के  सामने  धरी की धरी रह जाती  है | बहुत से तो स्टालिन को गाली देने में ही अपनी शक्ति जाया करते रहते हैं |संघी उनसे गाली दिलवाते हैं और मजा लेते हैं |अब संघियों ने लेनिन को भी अधिनायक बताना शुरू कर दिया है और वामपंथी रक्षात्मक मुद्रा में आ गए हैं | क्या लेनिन और स्टालिन या समाजवाद इसलिए खारिज किया जा सकता है क्यूंकि वह रूस में नकार दिया गया है ? भारत में कौन सा गाँधी और महात्मा बुद्ध के दर्शन को अपनाया जा रहा है लेकिन इससे गाँधी और महात्मा बुद्ध का महत्व कम नहीं हो जाता है | गाँधी और महात्मा बुद्ध को भले ही उनकी जन्मस्थली और कर्मस्थली से मिटाने की कोशिशे होती रही हों और चाहे उन्हें लांक्षित भी किया जाता हो लेकिन दुनिया भर में उनका आदर किया जाता है और विदेशों में उनके सम्मान में अनेक   स्मारक हैं |
लेनिन, स्टालिन, माओ, चेग्वेरा दुनिया भर के क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्रोत हैं| वे किसी एक देश के नहीं सब लोगों के हैं | पूरी दुनिया में जो चाहे उन्हें अपना सकता है | महात्मा गाँधी,भगवान बुद्ध.पैगम्बर मुहम्मद, ईसा मसीह जैसे महामना भी पूरी मानवता के हैं और पूरी दुनिया के मानवतावादी उनसे प्रेरणा लेते हैं उन्हें स्मरण करते हैं |इसी प्रकार कुछ लोग हिटलर और मुसोलिनी के मानने वाले भी हो  सकते हैं | वे उनके रास्ते पर चलने को प्रतिबद्ध हो सकते हैं लेकिन ऐसा कहने का साहस भी तो उनके अंदर होना चाहिए | बहुत संभव है कि हिटलर और मुसोलिनी या तैमूर लंग और चंगेज खान को विद्वेष के कारण खलनायक बना दिया गया हो और वो वास्तव में ऐसे क्रूर ना हों जैसा इतिहास में लिखा गया है | अब क्यूँकि उनके मानने वालों को कभी ठीक से अपना पक्ष रखने का मौक़ा नहीं मिला इसलिए उनका उजला पक्ष सामने नहीं आ सका और विपक्षी जैसा अपने दुश्मन के साथ कर सकते थे वैसा उन्हें बताते चले गए | जैसे मुझे जानकरी है कि हिटलर और मुसोलिनी दोनों कला प्रिय व्यक्ति थे |हिटलर स्वयं आर्टिस्ट था और मुसोलिनी ने अंतराष्ट्रीय फिल्म समारोह मनाना शुरू किया था लेकिन कोई भी आज इस बात को नहीं बताता है| सब उनकी  क्रूरता का ही जिक्र करते हैं | क्रूरता किसने नहीं की है ? क्या अंग्रेजों ने पुर्तगालियों ने स्पेनिश और डचों ने अपने उपनिविशों में मूल निवासियों का क्रूरता से दमन नहीं किया था ? क्या चर्चिल ने नहीं फिलस्तीनियों के बारे में नहीं कहा था कि अगर कुत्ता चरनी में लेटा रहे तो चरनी कुत्ते की नहीं हो जाती है ?
इसलिए मैं कहता हूँ कि जो हिटलर और मुसोलिनी के मानने वाले हैं या और किसी के भी मानने वाले हैं वो हिम्मत के साथ अपने आदर्श महापुरुषों को जनता के सामने जैसे चाहें वैसे रखें लेकिन जिनसे वो सहमत नहीं हैं उन महापुरुषों का अपमान ना करें क्यूँकि अपमान करने से अपमानित होने वाला का कुछ नहीं बिगड़ता है हाँ अपमान करने वाले का सम्मान जरूर गिर जाता है | वो कहते हैं ना आसमान की ओर मुँह उठाकर जो थूकते हैं थूक उन्हीं के मुँह पर आकर गिरता है | अब थूक वापिस आकर गिरना शुरू हो गया है | हमें ये थूक से सने चेहरे अच्छे नहीं लगते हैं | जाईये अपना मुँह धोकर आईये और फिर सभा में आकर बोलिये | वैसे अब आपकी बोलती बंद हो गयी है |अब आप कुछ बोल नहीं सकते हैं |
     फेसबुकियों वामपंथियों से अनुरोध है वे सिर्फ प्रतिक्रिया में बौखलायें ना बल्कि   लेनिन, स्टालिन, माओ, फिदेल कास्त्रों और चेग्वेरा के जीवन के प्रसंगों और विचारों से छोटे छोटे लेखों के माध्यम से जनता को अवगत कराने का काम करें| तभी वे स्वयं को कुछ बचा पाएंगे | जे एन यू या कुछ लेफ्ट के असर  वाले इलाकों को छोड़ दें तो बाकी देश के  युवा तो इन महानायकों के बारे में कुछ जानते ही नहीं है | हिंदी भाषी क्षेत्र  में तो लाल झंडे की पहचान ही गुम हो गयी है |भगत सिंह का सिर्फ नाम जानते हैं उनका काम कोई नहीं जानता है |अगर ये हाल रहा तो संघियों के बिना मारे ही वामपंथ ख़त्म हो जाएगा | इसलिए अपने संग्रहालय के पुराने हथियारों को निकालने के  साथ साथ नए हथियार गढ़ने की जरुरत है उन पर धार लगाने की जरुरत है | याद रखो भगत सिंह ने क्या कहा था क्रान्ति की धार  विचारों की शान पर तेज   होती है |युवाओं  में फिर  से   पढ़ने  लिखने   का जनून   पैदा   करने की जरुरत है | ये लड़ाई   अभी लम्बी चलेगी| ये लड़ाई   रुकने वाली नहीं है  

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