मंगलवार, 6 मार्च 2018

त्रिपुरा चुनाव के निहितार्थ















     माणिक सरकार ईमानदार और सादगी से जीवन जीने वाले नेता हैं वो हार गए |शायद इसलिए कि वो जनता को अपेक्षित सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा सके| लेकिन उन्होंने कभी लम्बी लम्बी भी नहीं फेंकी |अब अगर फेंकने से चुनाव जीते जा सकते हैं तो ईमानदारी और सादगी का क्या मोल रह जाता है ? फिर भी वामपंथी चुनाव हारे तो उन्हें आत्मविश्लेषण करना होगा और वे जरूर करेंगे क्यूंकि जनता को तो दोष दिया नहीं जा सकता है |लेकिन मणिपुर में इरोम शर्मीला भी चुनाव हार गयीं थी| माणिक सरकार तो फिर भी स्वयं जीते हैं इरोम शर्मीला को तो कुल नब्बे वोट ही मिली थी तो क्या ये माना जाए कि इरोम शर्मीला ने जनता के लिए कुछ नहीं किया ? दुनिया में इरोम शर्मिला की क्या कोई मिसाल है ? लेकिन साइकिल पर बैठकर गाँव गाँव घूमने वाली इरोम शर्मिला चुनाव कैसे जीत जाती जब हवाई जहाज में घूमने वाले उनके सामने ताल ठोक रहे थे ?
नेताओं और पार्टियों को ही नहीं जनता को भी आत्म विश्लेषण करने की जरुरत है कि वो क्या चाहती है ? जिस चुनाव में इरोम शर्मिला हार जाये, माणिक सरकार हार जाये और तमाम करोड़पति और माफिया चुनाव जीत जाएँ वो सही जनतंत्र नहीं कहा जा सकता है |
सच ये है कि ये चुनाव धनबल से, छल से और जुमलेबाजी से जीते जा रहे हैं | किसी साधनहीन नेता या पार्टी के लिए चुनाव लड़ना ही संभव नहीं है | 'चलो पलटाई' के जुमले में आकर जनता ने शीर्षासन किया है लेकिन शीर्षासन में कोई ज्यादा देर तक नहीं रह सकता है जल्द ही लोग सीधे खड़े हो जाएंगे |

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