शुक्रवार, 2 मार्च 2018

होली

पता करो दारू का रिश्ता कब से जुड़ता होली से
पता करो कब भांग चढ़ी थी, आँख लड़ी थी भोली से |
पता करो कब से देवर है भौजाई के चक्कर में
और कब से भौजाई बैठी भरे थाल रंग रोली से |


दिन हप्तों की बात नहीं ना बात महीनों सालों की
ये सदियों से रही रिवायत छूट रही घरवालों की |
होली के दिन मस्त रहें हम झूमें नाचें चिल्लायें
जो भौजाई बात करे ना खैर मना ले गालों की |



मिलाओ रंग केसरिया हरा नीला गुलाबी भी
हमारी लाल मदिरा का चढ़ाओ रंग शराबी भी |
कि हम हिन्दू ना मुस्लिम हैं ना अगड़े और पिछड़े हैं
कहे कुछ भी ज़माना हम जमाने भर के बिगड़े हैं |



कुछ रंग न बदरंग हैं अब पास हमारे  
बस अंग हैं कुछ ख़ास जो करते हैं इशारे |
पानी की ना बौछार ही हम छोड़ रहे हैं 
कुछ और भी हाँ ख़ास हम छोड़ेंगे शरारे |   

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