शनिवार, 21 जुलाई 2018

पप्पी झप्पी लपकी सी,

ये पप्पी झप्पी लपकी सी,उपहास देश की जनता का
नूरा कुश्ती है दोनों की, परिहास बड़ा निर्ममता का |

हक़ में जनता के खड़े नहीं, दुश्मन इनके हैं बड़े नहीं
दुश्मन हैं आम आदमी अब,उस के कब चाँटें जड़े नहीं |

चाँटा है नीरव मोदी का, है विजय माल्या का चाँटा
जनता का पैसा लूट लिया जम करके खूब माल काटा|

ये चेहरे, मोहरे हैं सारे, चोरों के और लुटेरों के
संसद में नाटक करते हैं,बनते हमदर्द कमेरों के |

मेहनत करने वालों की रोजी रोटी पर संकट भारी
अदला बदली कर राजतिलक की करते हैं ये तैयारी |

दिल्ली को अब्दाली लूटे, या लूटे नादिरशाह कोई
तुमको तो लुटना पिटना है, ना कभी सुनेगा आह कोई |

इसलिए बगावत करने को मैं गीत सुनाने आया हूँ
फिर इंकलाब की रीत चुनों, वो रीत बताने आया हूँ |

वो रीत जिसे नेताओं की पप्पी झप्पी में भूल गए |
वो रीत जिसे चुनकर शहीद फाँसी पर चढ़कर झूल गए |

बलिदान बिना जनता का कोई ख्वाब ना सच हो सकता है
बलिदान बिना दुनिया में कहीं ना इंकलाब हो सकता है |

फिर कुर्बानी की राह चुनों,फिर भगत सिंह से ख्वाब बुनों
दर्शक बनकर ही ना बैठो, नाटक का असली राग सुनों |

ये राग बड़ा मदहोशी का, ये राग बड़ा बेहोशी का
जागों जागों, भागों भागों, ये वक्त नहीं खामोशी |

तुम आज अगर खामोश रहे तो होश नहीं कल आयेगा
ज़िंदा ही लाते इंकलाब, मुर्दों को जोश ना आएगा |

तुम जिन्दा कौम अभी भी हो ये दुनिया को दिखला देना
संसद में बैठे हँसते जो, उन सबको ही रुलवा देना |

ये हँसी ताड़का,रावण की, दुर्योधन और दु:शासन की
भूखें नंगों की छाती पर,तख्ते ताउत,सिंहासन की |

सोने को जिनको राजमहल, मरने को ताजमहल मिलता
लाशों के खूनी कीचड़ में जिनका है लाल कमल खिलता |

अजगर सी नाल कमल की अब पूरे भारत में लिपट गई
जिन्दा रहना आसान नहीं, सबकी साँसें हैं सिमट गई |

ये नाल बड़ी जहरीली है, सब लील करेगी ये उजाड़
चुपचाप देखते ना रहना, सब मिलकर इसको दो उखाड़ |

पगडंडी से रजधानी तक फिर 'इंकलाब' का नारा हो
ये सारा देश हमारा है, ये सारा देश हमारा हो |

हम मेहनत करने वाले हैं,हम वीर सिपाही जनता के
हम अपना हक़ सारा लेंगे,सपने सच होंगें समता के |









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