शनिवार, 18 अगस्त 2018


ना श्रद्धा है ना अद्धा है कहो तो कुछ नहीं बोलूँ 
जो दिखता है उसे देखो या मैं इतिहास को खोलूँ ?
हजारों लोग हैं ऐसे, हैं जिनकी आँख में आँसू , 
तुम्हारी आँख को देखूँ या उनके साथ मैं हो लूँ?



तुम्हारी जिद है कि मैं आदमी को देवता मानूँ, 
दिवंगत आदमी को हर कोई अच्छा ही कहता है। 
जरूरत क्या है जो उसकी बुराई सामने रखें ?
बुरा कहने से उसका कुछ बिगड़ भी तो न सकता है |

सही ये बात कि कुछ भी बदल पाना नहीं संभव 
मगर कैसे किसी भी आदमी को देवता मानें ? 
हमें अपना सा लगता है जो करता आदमी गल्ती , 
हमारे पास वो दिल के गलत को जो गलत माने। 


बनाकर आदमी को देवता तुम पूजना चाहते, 
कर्म करने की जिम्मेदारी न कोई उठायेगा । 
तुम्हारा काम है केवल रटो तुम नाम की माला, 
यहाँ क्या काम करने देवता खुद चल के आयेगा ।

मगर ऐसे किसी भी देवता को हम ना मानेगें,
सवालो से परे न आदमी ना देवता कोई ।
बडा़ हो आदमी या देवता अन्तर नहीं कुछ भी,
गलत को हम गलत कहते वो फिर चाहे भी कोई   |  


ये शिष्टाचार या श्रद्धा जिसे कहते जरुरी  है ,
मगर इससे जरा भी तो हकीकत ना बदल जाती। 
हकीकत में रहो तुम भी हकीकत में रहे हम भी,
ये बातें देवताओं की समझ में ही नहीं आती । 

धरा पर आदमी रहते, न रहता देवता कोई 
यहाँ देवों के रहने को जगह न आसमानी है 
जमीं पे रह के बातें हों जमीं की है यही अच्छा ,
ये श्रद्धा आस्था विश्वाश बिलकुल बेईमानी हैं।

हमें तर्कों से समझाओ न बातों से ही बहकाओं 
ये बहलाना ये फुसलाना ये धमकाना बहुत देखा |
अभी तहजीब में हैं हम अभी मर्यादा रखते हैं
छदमवेशी हमारे वास्ते खींचों न तुम रेखा |  


ये मर्यादा की रेखाएं जिन्हें तुम लाँघ जाते हो 
हमारे पांव की जंजीर बनकर रह नहीं सकती  |
बहुत कुछ कह लिया तुमने बहुत कुछ सह लिया हमने    
हमारी जान भी है जान ज्यादा सह नहीं सकती |

ये जो तुम जान लेने पर हमारी हो उतर आये 
अगर है दम तो ले लो जान हम उफ़ भी न बोलेंगे |
मगर ये जान लो तुम भी न गफलत में कभी रहना 
न मरकर हम रहेंगे चुप, हम इससे ज्यादा बोलेंगे |  

हवायें गीत गायेगीं,फिजायें मुस्करायेंगी
कई सदियाँ हमारी याद में आंसू बहायेंगी  |
सुनों जालिम के पिछलग्गू,कबरबिज्जू,लकडभग्गू 
बना लो देवता इसको कभी तो लाज  आयेगी |












                 




       

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