गुरुवार, 9 अगस्त 2018


गज़ब का इतिहास लेखन--------------नजीर मलिक 
विरुदावली गैंग भी अजब गजब इतिहास लाती है। ईसा पूर्व से ही भारतीय राजाओं में जितनी भी आपसी लड़ाइयां हुईं उसके बारे में चन्दबरदाई के मानस पुत्र लिखते है कि फलां फलां में युध्द हुआ और फलां राजा जीत गया।
लेकिन ईसा काल से मध्यकाल तक जब यूनानियों, ईरानियों, अरबो, मुगलों और देसी राजाओं के बीच में युद्ध हुए तो भाषा बदल जाती है। वे लिखते हैं कि फलां राजा जीतने के निकट था, लेकिन उसी वक्त उसकी आँखों मे तीर लगा और उसकी दुर्भाग्य से हार हो गई।
उदाहरण के लिए पानीपत की लड़ाई के हेमू जीतने ही वाला था कि अकबर की तरफ से एक तीर उसकी आंख में लगा और वह घायल हो कर दुर्भाग्य से पकड़ा गया। 1527 में खानवा के युद्ध मे यही इतिहासकार बताते हैं कि बाबर के सैनिक का तीर राणा सांगा की आंख में लगा, फिर उसे दुर्भाग्य से मैदान से जाना पड़ा और वो युध्द हार गया, जबकि वो भाग गया था। 1528 में चंदेरी के युद्ध मे भी बाबर का तीर भी दुर्भागय से ही मेदनी राय की आंख लगा और वो मारा गया।
यही नही 1192 में भी मुहम्मद गौरी का तीर दुर्भागय से ही पृथ्वी राज की आंख में ही लगा था, जिसके कारण वो पकड़ कर मार दिया गया। जबकि गौरी तीर से नही तलवार से लड़ता था। भागते हुए पृथ्वी को सरस्वती के पास गिरफ्तार किया गया था। अब ये तीर भी कितने खतरनाक थे कि हाथ मे न रहते हुए भी इन राजाओं की आंख में दुर्भाग्य से ही लगते थे।
दरअसल ये चारण लोगों के दुर्भाग्य के तीर के पीछे बहुत बड़ी रणनीति थी। ये साबित करना चाहते है की देसी राजा बहुत बहादुर थे, बहादुरी से लड़ते थे, लेकिन वो बदकिस्मती से घायल होकर हार जाते थे। लेकिन इस शुतुरमुर्गी लेखन से कुछ नही होने वाला। सच ये है कि उनका सैन्य संचलन केंद्रीय नेतृत्व के संपर्क से दूर रहता था। छोटे छोटे राजाओं की सेना युद्दरत राजा की सेना में बिना रणनीति के लड़ती थी और संख्या में अधिक होते हुए भी हर जाती थी। इस बारे में दक्षिणपंथी इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने अपनी पुस्तक " भारत का सैन्य इतिहास" में बहुत विस्तार से लिखा है।
ऐसे विरुदावली परोसने वाले इतिहासकर किसी को भी भ्रमित कर सकते हैं, लेकिन अपने राज्य को प्रेरणा नही दे सकते। पीएन ओक, बत्रा जैसे लोग विकृत ही नही देश की नई पीढ़ी को निश्चिंत बना देने वाला इतिहास ही परोस रहे हैं।

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