शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

निजता का अधिकार

पिंजरें   के   पंछी   को   आजाद   कर दिया जाये तो  वो  हक्का  बक्का  होकर  एक  बार  चारों  ओर आँखें घुमाकर   देखता  है ,फिर अपने पंख फड़ फड़ाकर आकाश की ओर मुँह करके  उड़ जाता  है लेकिन  जल्द  ही वो घबराकर वापस  पिंजरे  के ऊपर आकर बैठ जाता है | खुले आकाश में उड़ने की आजादी का आनंद  लेना वो कभी का भूल चुका था इसलिए उसे यकायक मिलीआजादी से  बड़ी घबराहट होती है | पिंजरा उसे सुरक्षित जगह लगती है ओर खुला आसमान एक बड़ी आफत दिखता  है | जबकि पंछी की फितरत ही आसमान में आजादी से उड़ना है, पिंजरें में कैद होकर दाना पानी चुगना नहीं है|
पूर्ण स्वतंत्रता ऐसा ही अहसास है जिसे हम अपनी छोटी छोटी सहूलियतों और सुरक्षाओं के लिए सीमित कर लेते हैं |हमें ये सहूलियतें  और सुरक्षाएं  ही सामाजिकता  और नैतिकता लगने लगती हैं और हम चाहते हैं कि हम स्वयं ही नहीं दूसरे भी इन सीमाओं के अंदर ही रहें, कभी इनसे बहार न जाएँ | इन सीमाओं का अतिक्रमण करने वाले को हम असामाजिक और अनैतिक मानते हुए उसे सुधारने में लग जाते  हैं | इसके लिए हम जोर जबरदस्ती भी करते हैं,कानून बनाकर दण्डित भी करते हैं, धर्म का भय भी दिखाते हैं | लेकिन पंछी की तरह मानव भी स्वाभाविक आजादी से जीना चाहता है| वह उसके लिए कसमसाता भी है और इधर उधर हाथ पाँव भी मारता है लेकिन समाज का भय,धर्म की वर्जनायें और कानून की पाबंदियां उसे ऐसा नहीं करने देती हैं | वह धीरे धीरे इन सारी पाबंदियों का अभ्यस्त हो जाता है और स्वयं भी इन पाबंदियों को ही सही मानने मनवाने  लगता है | यदयपि स्वयं उसका मन कुंठित हो जाता है |
  आज सारा समाज ऐसे ही कुंठित मन वाले लोगों से भरा पड़ा है | बहुत सारे अपराध इस कुंठित मानसिकता के चलते ही होते हैं |समाज के बहुत सारे सफेदपोश लोग छुप छुपकर स्व स्वतंत्रता का रस लेते हैं लेकिन जिनकी  स्वतंत्रता उजागर हो जाती है उसे हिकारत की निगाह से देखते हैं | वो समाज ,धर्म और कानून की प्रताड़ना का सामना करता है| अब सुप्रीम कोर्ट ने स्त्री पुरुष के निजी स्वतंत्र कामाचार पर लगी बरसों पुरानी क़ानूनी बंदिशें निरस्त कर दी हैं | इस फैसले  से मन ही मन बहुत सारे लोग प्रसन्न होंगे लेकिन हमारा समाज तो दिखावा पसंद है इसलिए बहुत सारे लोग इस फैसले पर चुटकियां ले रहे हैं | समलैंगिक स्वतंत्रता का सम्मान करने के आदेश के बाद सर्वोच्च  न्यायलय का ये दूसरा  ऐसा आदेश है जिससे कथित नैतिकतावादियों को बड़ा झटका लगा है | सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के सामने वे कुछ कर तो नहीं सकते हैं बस उसका मखौल  उड़ाने  में लगे हैं जबकि यह न्यायलय का अपमान करने के बराबर है और क़ानूनी रूप से दंडनीय है| वस्तुत: पश्चिम से नागरिक आजादी की जिस अवधारणा को हमने ग्रहण किया है उसे पूर्ण रूप से अपनाने में हमें अभी बरसों लगेगें| हमारे न्यायालय  पूर्ण नागरिक स्वतंत्रता की ओर क्रमश: अपने कदम बढ़ा रहे हैं |न्यायालय के फैसले हमारी नागरिक स्वतंत्रता के इतिहास में मील के पत्थर साबित होंगे ओर समाज मेंबड़े बदलाव के कारन बनेगें| बाकी निंदा  करने वालों  का क्या  है इन लोगों ने अस्पृश्यता निवारण,विधवा विवाह, सती प्रथा, तीन तलाक मतलब की हर सुधारवादी निर्णय का विरोध किया है लेकिन कालांतर में इनका विरोध निर्रथक  ही साबित हुआ है | जिन्हें आजादी पसंद नहीं है जिन्हें आजादी से भय लगता है वो अपनी पसंद की जिंदगी जी सकते हैं लेकिन अब उन्हें इतना समझ लेना चाहिए कि दूसरों की निजी जिंदगी में दखल देने के उनके दिन अब लद गए हैं| अब अपराधी स्वतंत्रता के समर्थक नहीं उसमें बाधक कथित नैतिकतावादी लोग होंगे |   

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