दशहरा पर्व पर अमृतसर में हुए रेल हादसे पर टी वी पर बहस और विष्लेषण जारी है। एक सहाब फरमा रहे थे कि विदेश में पटरियाँ ऐसी खुली नहीं होती जैसी भारत में हैं। विदेशों में लोहे की ऐसी ही फेंसिग होती है जैसी हमारे यहाँ सरहद पर है। अगर रेलवे लाईन की फेंसिंग कर दी जाये तो अमृतसर दशहरा हादसा जैसी दुर्घटनायें नहीं होगीं।
ये एक अच्छा सुझाव है जिस पर कुछ अति दुर्घटना वाले तथा आबादी वाले क्षेत्रों में रेलवे लाईन की फेसिंग करने के लिये अवश्य अमल करना चाहिये। लेकिन मैं सोचता हूँ कि सारी रेलवे लाईन को लोहे के तारों के जाल से घेर देने की जरूरत नहीं है। इससे दूसरी तरह की समस्यायें उत्पन्न होगी। इससे आदमी ही नहीं जंगली जानवारों की आजादी में भी खलल पडे़गा। आज सीमा पर बाड़ है। रेलवे लाईन पर बाड़ लगाने के लिये कहा जा रहा है। नदियों पर बाड़ लगाने की जरूरत बताई जा रही है ताकि नदियों में कचरा ना डाल सकें। नालों और तालाबों को कचरे से अटने से बचाने के लिये बाड़ होनी चाहिये। महामार्गों पर दुर्घटना रोकने के लिये बाड़ होनी चाहिये। मिलट्री एरिया, संरक्षित वन क्षेत्र,जंगली जीव वासक्षेत्र के लिये बाड़ होती ही है। किसान भी अपने खेत की बाड़ करता है। स्कूलों, कालिजों, प्रशिक्षण केन्द्रों आदि की चहारदीवारी रहती ही है।मतलब कि हर जगह एक लौह घेरा है फिर भी आदमी सुरक्षित नहीं है। क्या ये अच्छा ना होगा कि आदमी के लिये ही एक बड़ा बाड़ा बना दिया जाये और बाकि सब जगह से बाड़ हटा ली जाये? क्यूँकि अब आदमी सिर्फ जेल में मतलब कि बाड़े में ही सुरक्षित है। वैसे गौर से देखें तो आदमी जेल में ही है, सर्वत्र बंधनों से जकड़ा हुआ। आदमी को हवा,पंछी, बादल जैसी आजादी नसीब नहीं है जो चाहे जहाँ चले जाते हैं। आदमी भी ऐसा ही आजाद क्यूँ नहीं रह सकता है? क्या आजादी की ख्वाहिश रखना गलत है?
ये एक अच्छा सुझाव है जिस पर कुछ अति दुर्घटना वाले तथा आबादी वाले क्षेत्रों में रेलवे लाईन की फेसिंग करने के लिये अवश्य अमल करना चाहिये। लेकिन मैं सोचता हूँ कि सारी रेलवे लाईन को लोहे के तारों के जाल से घेर देने की जरूरत नहीं है। इससे दूसरी तरह की समस्यायें उत्पन्न होगी। इससे आदमी ही नहीं जंगली जानवारों की आजादी में भी खलल पडे़गा। आज सीमा पर बाड़ है। रेलवे लाईन पर बाड़ लगाने के लिये कहा जा रहा है। नदियों पर बाड़ लगाने की जरूरत बताई जा रही है ताकि नदियों में कचरा ना डाल सकें। नालों और तालाबों को कचरे से अटने से बचाने के लिये बाड़ होनी चाहिये। महामार्गों पर दुर्घटना रोकने के लिये बाड़ होनी चाहिये। मिलट्री एरिया, संरक्षित वन क्षेत्र,जंगली जीव वासक्षेत्र के लिये बाड़ होती ही है। किसान भी अपने खेत की बाड़ करता है। स्कूलों, कालिजों, प्रशिक्षण केन्द्रों आदि की चहारदीवारी रहती ही है।मतलब कि हर जगह एक लौह घेरा है फिर भी आदमी सुरक्षित नहीं है। क्या ये अच्छा ना होगा कि आदमी के लिये ही एक बड़ा बाड़ा बना दिया जाये और बाकि सब जगह से बाड़ हटा ली जाये? क्यूँकि अब आदमी सिर्फ जेल में मतलब कि बाड़े में ही सुरक्षित है। वैसे गौर से देखें तो आदमी जेल में ही है, सर्वत्र बंधनों से जकड़ा हुआ। आदमी को हवा,पंछी, बादल जैसी आजादी नसीब नहीं है जो चाहे जहाँ चले जाते हैं। आदमी भी ऐसा ही आजाद क्यूँ नहीं रह सकता है? क्या आजादी की ख्वाहिश रखना गलत है?
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