मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, रूस के राष्ट्रपति पुतिन ,चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग भारत के प्रधानमंत्री नरेन्दर मोदी,कोरिया के तानाशाह किम जोंग जैसे मुँहबलियों की स्वनिर्मित महाबली की छवि को देखकर बरसों पुरानी जासूसी उपन्यासों के जासूसों की इमेज यादों में उभर आती है। 
चढती जवानी के दिनों में ओम प्रकाश शर्मा और इब्ने शफी के लिखे जासूसी उपन्यासों के जासूसों जेम्स बाण्ड,बगारोफ ,विक्रान्त,हमीद और कासिम के काल्पनिक कारनामों को पढ़कर बड़ा रोमांच होता था।कुछ कुछ ऐसा ही इन मुँहबली नेताओं की बातें सुनकर होता है। यहाँ भी सब हवा हवाई है, धरातल पर तो कहीं कुछ दिखता ही नहीं है। इनसे ज्यादा तो आल्हा उदल के किस्से सच हैं। 
पता नहीं नई पीढ़ी ने आल्हा सुनी है या नहीं, जासूसी उपन्यास पढ़े हैं या नहीं लेकिन जिन्होंने पढे़ होंगे वे मेरे उपरोक्त कथन से जरूर सहमत होंगे।

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