रविवार, 7 अक्टूबर 2018

ये बड़ी खतरनाक स्थिति है।इसके सुधार के लिये यदि हम आज कमर कस के जुट जायें तो लगभग दस बरसों में हालात बदल सकते हैं। दूध हमारे लिये बहुत जरूरी है लेकिन उसकी उपलब्धता अपर्याप्त है और शुद्धता दुर्लभ है। शुद्ध और पर्याप्त दूध के लिये पशुपालन को उद्योग का दर्जा मिलना चाहिये। पशुपालन के लिये जरूरी चीजें भूमि, भवन, आहार और चिकित्सा सुविधा सहज सुलभ होनी चाहियें। पशु दूध के लिये ही नहीं मांस के लिये भी पाले जाने चाहियें और उनके साथ माता दादा जैसा ऐसा भावनात्मक रिश्ता नहीं जुड़ना चाहिये जो उनके उपयोग में बाधा पैदा करे। 

               बहुत स्पष्ट बात है कि आज की मंहगाई के दौर में अगर अनुपयोगी पशु को मांस भक्षण के लिये मारने पर प्रतिबन्ध रहेगा तो वो लोगों के लिये परेशानी का कारण बनेगा। कोई पशु पालक क्यूँ परेशान होना चाहेगा? चाहे वह पशु गाय ही क्यूँ न हो। लेकिन अगर पशु को पालकर या मारकर पशुपालक को लाभ होता है तो वह बड़ी संख्या में पालेगा, पोषेगा। पशुओं से भावनात्मक रिश्ते बनाने की बात भी इसीलिये थी ताकि हम अच्छे से उसकी देख रेख करें। लेकिन लोगों ने अपनी भावना को दूसरे के लिये नफरत का हथियार बनाकर आपस में द्वेष भाव तो पैदा किया ही है पशुओं की भी दुर्गति करा दी है और आम जनता के लिये भी दुश्वारियाँ पैदा की हैं। किसी को ना शुद्ध दूध मिल रहा है और न मांसाहारियों को खाने को मांस ही ठीक से मिल पा रहा है। निर्यात के लिये भी मांस की भारी मांग है जो देश के लिये विदेशी मुद्रा अर्जित करने का बड़ा स्रोत है।
यद्यपि मैं मांसाहार को नापसन्द करता हूँ लेकिन अपनी पसन्द या नापसन्द दूसरों पर थोपने के सख्त खिलाफ हूँ। जब तक मांस खाने वाले मांसाहार चाहते हैं और जब तक वैग्यानिक इसे निषिद्ध नहीं करते हैं किसी को मांस खाने से नहीं रोका जाना चाहिये ? ये नहीं होंगे तो बेकार पशुओं का क्या होगा ? कोई भक्त उन्हें माताजी पिताजी बनाकर घर पर न रखेगा। गरीब मांसाहारी लोग जमीन के गिद्ध हैं जो अशक्त बीमार पशुओं को खाकर आपके परिवेश को शुद्ध करते हैं यद्यपि ऐसा कर वे स्वयं को अनेक बीमारियों से ग्रस्त कर लेते हैं जो एक अलग बड़ी समस्या है और जिसका समाधान भी काफी हद तक बड़ी संख्या में पशुपालन से ही निकलेगा। तो फिर आओ क्या हम सरकार से पशुपालन के लिये अधिक सुविधा देने की माँग करें?


चिलम चिलम चिलम
WHO की चेतावनी है कि दूध की और अन्य चीज़ों की मिलावट न रोकी गयी तो 2025 तक 87% तक भारतीयों को हो सकता है कैंसर! आइये इसे एक और एंगल से दिखाऊँ आपको!
भारत में तक़रीबन 85-90% तक बिज़नेस वैश्य/बनिया वर्ण के हाथ है जो कि सवर्ण हैं! और मिलावट, कालाबाज़ारी, चोरबाज़ारी, कालेधन से उनका रिश्ता क्या रहा है सभी जानते हैं! ये लोग परोक्ष रूप से मनुवाद के फंडर या पोषक रहे हैं
ये जानने का समय आ चुका है कि पैसे के लालच में सदियों से ये लोग क्या परोस रहे हैं समाज को? क्यों ये लोग निर्दोष जनसंख्या को कैंसर जैसी लाइलाज़ बीमारियों का ग्रास बनाने पर तुले हैं?
यहाँ दूध में पानी मिलाने की बात नहीं हो रही बल्कि मोटा माल कमाने के लिए केमिकल्स मिलाकर प्रोडक्ट्स बेचने के सम्बन्ध में चर्चा है यह

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