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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

दशहरा पर्व पर अमृतसर में हुए रेल हादसे पर टी वी पर बहस और विष्लेषण जारी है। एक सहाब फरमा रहे थे कि विदेश में पटरियाँ ऐसी खुली नहीं होती जैसी भारत में हैं। विदेशों में लोहे की ऐसी ही फेंसिग होती है जैसी हमारे यहाँ सरहद पर है। अगर रेलवे लाईन की फेंसिंग कर दी जाये तो अमृतसर दशहरा हादसा जैसी दुर्घटनायें नहीं होगीं।
 ये एक अच्छा सुझाव है जिस पर कुछ अति दुर्घटना वाले तथा आबादी वाले क्षेत्रों में रेलवे लाईन की फेसिंग करने के लिये अवश्य अमल करना चाहिये। लेकिन मैं सोचता हूँ कि सारी रेलवे लाईन को लोहे के तारों के जाल से घेर देने की जरूरत नहीं है। इससे दूसरी तरह की समस्यायें उत्पन्न होगी। इससे आदमी ही नहीं जंगली जानवारों की आजादी में भी खलल पडे़गा। आज सीमा पर बाड़ है। रेलवे लाईन पर बाड़ लगाने के लिये कहा जा रहा है। नदियों पर बाड़ लगाने की जरूरत बताई जा रही है ताकि नदियों में कचरा ना डाल सकें। नालों और तालाबों को कचरे से अटने से बचाने के लिये बाड़ होनी चाहिये। महामार्गों पर दुर्घटना रोकने के लिये बाड़ होनी चाहिये। मिलट्री एरिया, संरक्षित वन क्षेत्र,जंगली जीव वासक्षेत्र के लिये बाड़ होती ही है। किसान भी अपने खेत की बाड़ करता है। स्कूलों, कालिजों, प्रशिक्षण केन्द्रों आदि की चहारदीवारी रहती ही है।मतलब कि हर जगह एक लौह घेरा है फिर भी आदमी सुरक्षित नहीं है।  क्या ये अच्छा ना होगा कि आदमी के लिये ही एक बड़ा बाड़ा बना दिया जाये और बाकि सब जगह से बाड़ हटा ली जाये? क्यूँकि अब आदमी सिर्फ जेल में मतलब कि बाड़े में ही सुरक्षित है। वैसे गौर से देखें तो आदमी जेल में ही है, सर्वत्र बंधनों से जकड़ा हुआ।  आदमी को हवा,पंछी, बादल जैसी आजादी नसीब नहीं है जो चाहे जहाँ चले जाते हैं। आदमी भी ऐसा ही आजाद क्यूँ नहीं रह सकता है? क्या आजादी की ख्वाहिश रखना गलत है?

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

राहुल का गोत्र

है और बुनियादी यहाँ एक इन्टरनेशनल सर्वधर्मसमावेशी परिवार के वारिश से भी उसका गोत्र पूछा जा सकता है इसमें कुछ हैरान होने की बात नहीं है, हैरत की बात तो ये है कि गोत्र बताया भी जा रहा है। बताने वाला अपने बारे में कितना निश्चित है ये कहना तो मुश्किल है लेकिन पूछने वाले बिल्कुल भी सन्तुष्ट नहीं हैं। वे कह रहे हैं कि गोत्र नाना नानी से नहीं दादा दादी से से जाना जाता है। अतः राहुल गाँधी अपने दादा का गोत्र बतायें। अब क्यूँकि राहुल गाँधी के दादा फिरोज गाँधी पारसी हैं वो ब्राह्मण नहीं हैं इसलिये उनका गोत्र वो नहीं हो सकता है जो पण्डित नेहरू का है। कान्ग्रेस के लोग कह रहे हैं कि गोत्र मातृ कुल से भी चलता है। विरोधी कह रहे हैं कि फिर सोनिया गाँधी का गोत्र बताओ। मतलब ये कि धर्म सम्प्रदाय जाति की घ्रणा फैलाने के बाद अब ये कुल गोत्र का टकराव चाहते हैं। एक ऐसे समाज में जहाँ ऊँच नीच के ऐसे हिकारत के भाव गहरे जड़ जमाये हों और उन्हें बढावा भी दिया जाता हो वहाँ समता, समानता, उदारता की आस रखना व्यर्थ है। ये वही लोग हैं जो उन धार्मिक समुदायों से स्वयं को श्रेष्ठ बताते है जहाँ किसी भी देश,धर्म और जाति के लोग बराबरी के व्यवहार के हकदार हैं। ये लोग ऐसी मानसिक जकड़बन्दी से ग्रस्त हैं कि किसी भी सूरत में अपने धार्मिक समूह में बाहरी व्यक्ति के लिये कोई जगह नहीं रखते हैं। असल में बाहरी क्या इन्हें अपने ही उन लोगों से बहुत परेशानी रहती है जिन्हें ये नीच जात समझते हैं। और ये नीच जात कोई खास जाति नहीं है सब जाति के लोग यहाँ स्वयं को उच्च और दूसरे को नीच जाति का समझते हैं। फिर भी दावा ये कि हम हिन्दुओं को संगठित कर शक्तिशाली समाज बनायेंगे और गैर हिन्दूओं का मुकाबला करेंगे। क्या जिस समाज में जाति और सम्प्रदाय के बाद कुल और गोत्र का झगड़ा खड़ा किया जा रहा हो वो कभी संगठित और शक्तिशाली हो सकता है? इतिहास गवाह है कि हमारा समाज ऐसी सोच से गर्त में चला गया है, शक्तिशाली नहीं हुआ है। लेकिन ऐसी दकियानूसी सोच के लोग आज इस कदर हावी हैं कि राहुल गाँधी उनसे भी एक कदम आगे बढकर स्वयं को पक्का हिन्दू साबित करने में ही अपना भविष्य सुरक्षित समझ रहे हैं।
    धर्म निरपेक्षता की सोच की परिणति पूर्णतः धर्म सम्प्रदाय,जाति विहीन समाज के निरमाण में होनी चाहिये थी किन्तु वह.सर्व धर्म समभाव से बढकर अपने अपने धर्म जाति समूह के अन्धविश्वाशी सशक्तिकरण में बदल गयी है। ये हमारी प्रगति नहीं अधोगति है। राहुल गाँधी से इस अधोगति की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने बहुत निराश किया है। वे अपनी इस रणनीति से चुनाव भले ही जीत जायें लेकिन साम्प्रदायिक ताकतों से नहीं जीत सकते है और समाज को आगे तो बिल्कुल नहीं ले जा सकते हैं। 

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, रूस के राष्ट्रपति पुतिन ,चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग भारत के प्रधानमंत्री नरेन्दर मोदी,कोरिया के तानाशाह किम जोंग जैसे मुँहबलियों की स्वनिर्मित महाबली की छवि को देखकर बरसों पुरानी जासूसी उपन्यासों के जासूसों की इमेज यादों में उभर आती है। 
चढती जवानी के दिनों में ओम प्रकाश शर्मा और इब्ने शफी के लिखे जासूसी उपन्यासों के जासूसों जेम्स बाण्ड,बगारोफ ,विक्रान्त,हमीद और कासिम के काल्पनिक कारनामों को पढ़कर बड़ा रोमांच होता था।कुछ कुछ ऐसा ही इन मुँहबली नेताओं की बातें सुनकर होता है। यहाँ भी सब हवा हवाई है, धरातल पर तो कहीं कुछ दिखता ही नहीं है। इनसे ज्यादा तो आल्हा उदल के किस्से सच हैं। 
पता नहीं नई पीढ़ी ने आल्हा सुनी है या नहीं, जासूसी उपन्यास पढ़े हैं या नहीं लेकिन जिन्होंने पढे़ होंगे वे मेरे उपरोक्त कथन से जरूर सहमत होंगे।

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

ये बड़ी खतरनाक स्थिति है।इसके सुधार के लिये यदि हम आज कमर कस के जुट जायें तो लगभग दस बरसों में हालात बदल सकते हैं। दूध हमारे लिये बहुत जरूरी है लेकिन उसकी उपलब्धता अपर्याप्त है और शुद्धता दुर्लभ है। शुद्ध और पर्याप्त दूध के लिये पशुपालन को उद्योग का दर्जा मिलना चाहिये। पशुपालन के लिये जरूरी चीजें भूमि, भवन, आहार और चिकित्सा सुविधा सहज सुलभ होनी चाहियें। पशु दूध के लिये ही नहीं मांस के लिये भी पाले जाने चाहियें और उनके साथ माता दादा जैसा ऐसा भावनात्मक रिश्ता नहीं जुड़ना चाहिये जो उनके उपयोग में बाधा पैदा करे। 

               बहुत स्पष्ट बात है कि आज की मंहगाई के दौर में अगर अनुपयोगी पशु को मांस भक्षण के लिये मारने पर प्रतिबन्ध रहेगा तो वो लोगों के लिये परेशानी का कारण बनेगा। कोई पशु पालक क्यूँ परेशान होना चाहेगा? चाहे वह पशु गाय ही क्यूँ न हो। लेकिन अगर पशु को पालकर या मारकर पशुपालक को लाभ होता है तो वह बड़ी संख्या में पालेगा, पोषेगा। पशुओं से भावनात्मक रिश्ते बनाने की बात भी इसीलिये थी ताकि हम अच्छे से उसकी देख रेख करें। लेकिन लोगों ने अपनी भावना को दूसरे के लिये नफरत का हथियार बनाकर आपस में द्वेष भाव तो पैदा किया ही है पशुओं की भी दुर्गति करा दी है और आम जनता के लिये भी दुश्वारियाँ पैदा की हैं। किसी को ना शुद्ध दूध मिल रहा है और न मांसाहारियों को खाने को मांस ही ठीक से मिल पा रहा है। निर्यात के लिये भी मांस की भारी मांग है जो देश के लिये विदेशी मुद्रा अर्जित करने का बड़ा स्रोत है।
यद्यपि मैं मांसाहार को नापसन्द करता हूँ लेकिन अपनी पसन्द या नापसन्द दूसरों पर थोपने के सख्त खिलाफ हूँ। जब तक मांस खाने वाले मांसाहार चाहते हैं और जब तक वैग्यानिक इसे निषिद्ध नहीं करते हैं किसी को मांस खाने से नहीं रोका जाना चाहिये ? ये नहीं होंगे तो बेकार पशुओं का क्या होगा ? कोई भक्त उन्हें माताजी पिताजी बनाकर घर पर न रखेगा। गरीब मांसाहारी लोग जमीन के गिद्ध हैं जो अशक्त बीमार पशुओं को खाकर आपके परिवेश को शुद्ध करते हैं यद्यपि ऐसा कर वे स्वयं को अनेक बीमारियों से ग्रस्त कर लेते हैं जो एक अलग बड़ी समस्या है और जिसका समाधान भी काफी हद तक बड़ी संख्या में पशुपालन से ही निकलेगा। तो फिर आओ क्या हम सरकार से पशुपालन के लिये अधिक सुविधा देने की माँग करें?


चिलम चिलम चिलम
WHO की चेतावनी है कि दूध की और अन्य चीज़ों की मिलावट न रोकी गयी तो 2025 तक 87% तक भारतीयों को हो सकता है कैंसर! आइये इसे एक और एंगल से दिखाऊँ आपको!
भारत में तक़रीबन 85-90% तक बिज़नेस वैश्य/बनिया वर्ण के हाथ है जो कि सवर्ण हैं! और मिलावट, कालाबाज़ारी, चोरबाज़ारी, कालेधन से उनका रिश्ता क्या रहा है सभी जानते हैं! ये लोग परोक्ष रूप से मनुवाद के फंडर या पोषक रहे हैं
ये जानने का समय आ चुका है कि पैसे के लालच में सदियों से ये लोग क्या परोस रहे हैं समाज को? क्यों ये लोग निर्दोष जनसंख्या को कैंसर जैसी लाइलाज़ बीमारियों का ग्रास बनाने पर तुले हैं?
यहाँ दूध में पानी मिलाने की बात नहीं हो रही बल्कि मोटा माल कमाने के लिए केमिकल्स मिलाकर प्रोडक्ट्स बेचने के सम्बन्ध में चर्चा है यह

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

बाबा  राम देव् ने आगे ये भी कहा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र जरूर है लेकिन वास्तविक लोकतंत्र यहाँ नहीं है| भारत में वास्तविक लोकतंत्र आने में अभी बीस साल लग जायेंगे|
बाबा के कथन से असहमत होने का कोई कारण नहीं है| भारत में नेताओं ,प्रशासन और समाज में लोकतांत्रिक व्यवहार का नितांत अभाव है | लेकिन ये बहुत आश्चर्य जनक है कि हर बात में स्वदेशी की श्रेष्ठता का गुणगान करने वाले बाबा रामदेव ने लोकतंत्र में स्वदेशी की महानता का जयघोष नहीं किया| ऐसा पहली बार देखने में आया है कि बाबा रामदेव ने किसी महत्वपूर्ण मामलें में विदेश को आदर्श और बेहतर बताया है वरना वे हर हाल में स्वदेशी के गुणगान में लगे रहते हैं| उनका दावा है कि यूनिलीवर,कोलगेट, जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से स्वदेशी पतंजलि ने बाजार छीन कर अपना रुतबा कायम कर लिया है| देश में तो वाकई पतंजलि ने सबसे कम समय में अपने लिए बड़ा बाजार हासिल कर लिया है लेकिन सवाल ये है कि क्या विदेशों में भी उसने अपनी कोई मार्केट वैल्यू बनायी है ? यूनिलीवर ,कोलगेट या पेप्सी ने सारी दुनियां के बाजारों में अपने उत्पादों के लिए जगह हासिल की है| पतंजलि को अभी ऐसा करना होगा |
लोकतांत्रिक व्यवहार के बारे में बाबा रामदेव ने चाहे जो कहा हो लेकिन सच ये है कि सारी दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जो हमसे बेहतर है और जिसे अपनाया जाना चाहिए | हर मामले में स्वदेशी का आग्रह दुराग्रह और मिथ्याभिमान ही कहा जा सकता है जो किसी भी प्रकार से जन हित में नहीं है |

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

विपक्ष के महागठबन्धन की राह में कई बड़ी समस्यायें हैं। सबसे बड़ी समस्या तो क्षेत्रीय दलों के अलम्बरदारों की महत्वाकाँक्षा है। सब प्रधान मंत्री बनना चाहते हैं और कई इसका ऐलान भी करा रहे हैं। सबसे ज्यादा हल्ला बहन जी के समर्थक मचा रहे है जबकि आज की तारीख में लोकसभा में उनका एक सदस्य नहीं है और इसकी भी कुछ गारंटी नहीं है कि सपा से समझौता किये बिना वो कुछ बड़ी जीत हासिल कर लेंगी लेकिन इरादा प्रधान मंत्री बनने का है। इसी तरह ममता बनर्जी हैं।उनकी भी कोई गारंटी नहीं है कि वो राज्य की सत्ता में वापसी कर पायेंगी लेकिन अगर वो विधान सभा चुनाव जीत लेती हैं तो फिर लोक सभा चुनाव में सीधे मुँह किसी से बात ना करेंगी। वैसे भी वो किसी से सीधे मुँह बात नहीं करती हैं। वामपन्थियों को तो फूटी आँख नहीं देख सकती हैं। यू पी में सपा बसपा जैसा उनका सम्बन्ध है लेकिन वो सपा बसपा की तरह हाथ नहीं मिलायेगीं। महागठबंधन में भरोसे के साथी सपा ओर राजद ही हैं जिनके नेता भाजपा के खिलाफ मजबूती से खड़े हैं। लालू प्रसाद यादव जी के जेल में होने के कारण उनके सामने इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है। सपा में अगर मुलायम सिंह नेता होते तो गठबन्धन को अपनी शर्तों पर स्वीकारते और फिर भी उनका कोई भरोसा नहीं था कि वो कब अन्दरखाने भाजपा से मिलीभगत कर दूर ना भाग खड़े होते। लेकिन अखिलेश से कोई समस्या होने वाली नहीं है। वे सधे हाथों से अपनी पारी खेल रहें है और विश्वाश है कि लम्बा खेलेंगे। इन सबसे भी बड़ी समस्या गठबन्धन की धुरी स्वयं कान्ग्रेस है। उसके नेता राहुल गाँधी को महागठबन्धन तो अपना नेता मान ही नहीं रहा है कान्ग्रेस के नेता भी उन्हें सीरियसली अपना नेता नहीं मानते हैं। यद्यपि कांग्रेस में नेता ही नेता हैं संगठन का कुछ अता पता नहीं है। राहुल की समस्या ये है कि उनका मुकाबला राजनीति के मंझे हुए योद्धाओं से हो रहा है। सामने मोदी जैसा महारथी है जिसका अमित शाह जैसा कुशल सारथी है जो अपने संगठित रथ के सब पेच कसकर मैदान में उतरता है। दूसरी तरफ राहुल गाँधी हैं जिनका ना कोई सारथी है ना कोई रथ है। जो अभिमन्यू की तरह अकेले चक्रव्यूह तोड़ने के लिये जूझ रहे हैं।उनके पास कोई संगठन शक्त्ति नहीं है। संगठन के नाम पर एक हजूम है जो उनके साथ तमाशगीर की तरह जुटता है और तमाशा खत्म होने पर घर जाकर आराम फरमाता है। क्या ऐसी सूरते हाल में कोई मजबूत गठबन्धन बन सकता है ? कोई गठबन्धन नहीं बन.सकता है। लेकिन जन दबाव इतना है कि गठबन्धन बनेगा और जीतेगा भी ।ये अलग बात है कि जीतने के बाद नेताओं की महत्वाकाँक्षाओं के चलते जनता पार्टी की तरह टूट जाये लेकिन जनता इसमें क्या कर सकती है? लोकतंत्र में कुछ जिम्मेदारी तो नेताओं की भी बनती है। हमारे नेता जब अपनी जिम्मेदारी समझने लगेंगे तो कुछ समस्या नहीं आयेगी। उम्मीद करें नेता अपनी जिम्मेदारी निभायेंगे। उम्मीद के अलावा हम कर भी क्या सकते है।

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

समाचार प्लस चैनल पर भाजपा प्रवक्ता आई पी सिंह फरमा रहे हैं कि 'उनकी कालौनी में नब्बे प्रतिशत सफाई कर्मी रोहिन्गया और बंन्गलादेशी हैं। ' लो सुन लो इनकी बात ये गन्दगी फैलायें तो कोई बात नहीं लेकिन जो सफाई करें वो घुसपैठिये हैं? राष्ट्रिय नागरिकता रजिस्टर बनाये जाने के औचित्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं। एक रोहिंग्या लड़के ने सवाल किया कि हमारी तो कोई राष्ट्रियता ही नहीं है हमें कहाँ भेजा जायेगा ? मेरा सवाल है कि संघवादी तो वृहत्तर भारत की बात करते हैं जिसमें भारत की ऐतिहासिक सीमाओं से बाहर के वो देश भी शामिल हैं जो आज किसी भी तरह भारत से सम्बद्ध नहीं हैं लेकिन अखण्ड भारत के लोग क्यों परेशान हों वे तो भारत के हर भाग में रहने का हक रखते हैं। क्या अखण्ड भारत के बासिन्दों में भेदभाव कर अखण्ड भारत की कल्पना की जा सकती है? ऐसे लोग जो भारत के खण्ड खण्ड होने से असुरक्षा के भाव में जी रहे हैं ये भारत की एकता के भरोसेमन्द सिपाही साबित होंगे क्यूँकि अखण्ड भारत में ही बिना भय के रह सकते हैं लेकिन आज उन्हें ही अविश्वाश की नजर से देखा जाता है और उन्हें भारत के लिये खतरा बताया जा रहा है।जिन्दा रहने की जद्दो जहद में जुटे राष्ट्रियताहीन मनुष्य कैसे किसी देश के लिये खतरा हैं ये बात समझ से बाहर है। सच तो ये है कि अन्धराष्ट्रवाद से ग्रसित जन समूह और देश मनुष्यता के लिये खतरा हैं। धरती पर देश की अवधारणा प्राकृतिक नहीं है । देश कुछ आदमियों की ताकत के बल पर किसी भूभाग में जनसमूह को नियन्त्रित रखने की व्यवस्था का नाम है ।इस व्यवस्था में निरन्तर उदारता के व्यवहार की ओर बढते रहने की आवश्यकता है। ये उदारता इस सीमा तक बढनी चाहिये कि यह वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श को प्राप्त हो जाये किन्तु वर्तमान काल में ऐसा करने की बजाये पीछे कबीलाई युग में ले जाने की कौशिश हो रही है। राष्ट्रवाद कबीलाई मानसिकता का परिष्क्रृत रूप मात्र है इसे लेकर गर्वित होना या बात बे बात हुँकार लगाना क्या कबिलाई व्यवहार को प्रदर्शित करता है। अगर सममान से जीने के नैसर्गिक अधिकार की रक्षा करनी है तो इस मानसिकता का त्याग करना होगा। आज सरकारें मनुष्य के सम्मान से जीने के अधिकार का सम्मान नहीं कर रहीं हैं। वे तरह.तरह के बहाने बनाकर नागरिकों में भेद कर रहीं हैं इसकी ताजा कौशिश राष्ट्रिय नागरिकता रजिस्टर के रूप में है जिसे देशभक्ति से अनावश्यक रूप से जोड़ा जा रहा है और स्वयं को देशद्रोही घोषित कर दिये जाने के खतरे को देखते हुए सभी दल इसका समर्थन करने को बाध्य हो रहें हैं लेकिन इन्सानियत का तकाजा है किसी भी इन्सान को राष्ट्रियता के नाम पर परेशान ना किया जाये और जो जहाँ रहना चाहता है उसे वहाँ रहने दिया जाये।

बुधवार, 19 अप्रैल 2017

छात्र मशाल खान की हत्या



सरहदों के इधर, सरहदों के उधर सबसे सस्ते रहें हैं हमारे ही सर हम तो हँसते रहे सर कटाते रहे काटने वालों के दिल में बैठा है डर.
سرحدوں کے ادھر، سرحدوں کے ادھر
سب سے سستے رہیں ہیں ہمارے ہی سر
ہم تو ہنستے رہے سر كٹاتے
کاٹنے والوں کے دل میں بیٹھا ہے ڈ
sarahadon ke idhar, sarahadon ke udhar
sabase saste rahen hain hamaare hee sar
ham to hansate rahe sar kataate
kaatane vaalon ke dil mein baitha hai dar.
शिखा अपराजिता added 2 new photos.

पाकिस्तान में धर्मोन्मादी भीड़ द्वारा ईशनिंदा के नाम पर जिस छात्र मशाल खान की हत्या की गई वह मार्क्सवादी था । पाकिस्तान में वह अल्पसंख्यकों के हक की बात करता था । हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों के विरुद्ध घृणा के प्रचार के खिलाफ लिखता था, बोलता था । अपने आखरी इंटरव्यू में यूनिवर्सिटी में फीस वृद्धि पर उसने अपनी बात रखी थी । नीचे उसके कमरे की फ़ोटो संलग्न की है जिसमें दीवार पर लगी मार्क्स की फ़ोटो मानो चेतावनी भरी नजरों से पुलिसवालों को घूर रही हैं । सरहद के इस पार हो या उस पार, हिन्दू कट्टरपंथियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों के सबसे बड़े दुश्मन मार्क्सवादी ही हैं ।
क्यों हैं, क्योंकि वे सच बोलते हैं, और सच के लिए जान देने की हिम्मत रखते हैं । मशाल मरते नहीं, हम, इस दुनिया के मार्क्सवादी तुमसे ये वादा करते हैं कि तुम्हारी मशाल बुझेगी नहीं ।
तुम्हारी शहादत बेकार नहीं जाएगी कॉमरेड मशाल खान । लाल सलाम

पेशावर। पाकिस्तान की एक आतंकवाद निरोधी अदालत ने आठ छात्रों को उदारवादी रवैया रखने वाले अपने एक सहपाठी की बर्बरता से हत्या के मामले में चार दिन के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया। उधर, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने ईश निंदा के आरोपों को लेकर छात्र की हत्या की जोरदार निंदा की।

खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के मर्दान में खान अब्दुल वली खान विश्वविद्यालय के आठ छात्रों को अदालत के समक्ष पेश किया गया, जिसने उन्हें चार दिन के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया। विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के छात्र मशाल खान के कपड़े फाड़ दिए गए, उसकी पिटाई की गई और उसके सिर और छाती में उग्र भीड़ ने गोली मार दी। यह घटना गुरवार को हुई थी।
मोबाइल फोन कैमरे से बनाया गया जघन्य हिंसा का वीडियो में खान का निर्वस्त्र शरीर खून से लथपथ दिखायी पड़ रहा है। उसे पहले हॉलवे में खींचा जा रहा है और उसके बाद परिसर की सडक़ पर खींचा जा रहा है। एक अन्य छात्र अब्दुल्ला की भी बुरी तरह पिटाई की गई। हालांकि, पुलिस ने उसे हमलावरों से बचा लिया। प्रधानमंत्री शरीफ ने छात्र की पीट-पीटकर हत्या किए जाने की आज जोरदार शब्दों में निंदा की। प्रधानमंत्री ने कहा कि समूचे देश को इस अपराध की निंदा करने में एकजुट होना चाहिए और समाज में सहिष्णुता और विधि के शासन को प्रोत्साहन देना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘राज्य ऐसे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करेगा जो कानून को अपने हाथ में लेगा।’’
शरीफ ने कहा कि वह असंवेदनशील भीड़ द्वारा छात्र की हत्या से बेहद दुखी हैं। उन्होंने घटना में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया। उन्होंने पुलिस से घटना के लिए जिम्मेदार सभी लोगों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। -(एजेंसी)



मंगलवार, 28 मार्च 2017

पाकिस्तान में ईश निंदा

भारत  में पी एम् सी एम् की आलोचना  असह्य हो रही है उधर पडौसी देश पाकिस्तान में ईश निंदा पर कोर्ट ने रोक लगा दी है .यहाँ तक की फेसबुक पर ईश निंदा की पोस्ट भी हटाई जा रही हैं .जिसको भी उच्च पद पर बिठा दिया जाता है वो चाहे भगवान हो या इन्सान स्वयं को आलोचना से परे समझने लगता है .उन से भी ज्यादा उनके भक्त उन्हें आलोचना /निंदा से मुक्त समझने लगते हैं जबकि नर से ही नारायण बनता है .फिर कोई नर या कि आदमी आलोचना से परे कैसे हो सकता है ?  जहां राम को बाली और शम्बूक का वध करने के कारण  और कृष्ण को कर्ण और दुर्योधन का अनीति से वध करने के कारण लोक निंदा का सामना करना पड़ा हो वहाँ किसी नेता को आलोचना से परे होने की ख्वाहिश नहीं करनी चाहिए .कहा तो यह गया है कि निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय ताकि वह आपकी गलतियों को इंगित करता रहे जिससे आप समय रहते स्वयं को ठीक पथ पर रख सकें .यदि आप निंदक या आलोचक को सहन नहीं कर सकते हैं और सदैव जी हजुरी पसंद करते हैं तो याद रखिये ये जी हजूरिये तब  तक ही आप के इर्द गिर्द दिखाई देंगे जब तक आप समर्थ हैं जब आप सत्ता की ताकत से वंचित होंगे ये जी हजूरिये आपके विरोधी के साथ गलबाहियां करते नजर आयेंगे .

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

1-
यू पी का चुनाव किसी महाभारत से कम नहीं है.मतदाताओं को धमकाने रिझाने का कम पूरे जोर शौर से चालू है. एक तरफ बात बहादुर भगवा सरकार हैं जो कहते हैं कि 'यू पी में हमें बहुमत मिलेगा तो राज्य सभा में हमारे ज्यादा एम् पी चुने जायेंगें .राज्य सभा में हमारा बहुमत हो जायेगा तो हम ऐसे विधेयक पास कर सकेंगे जिनसे यू पी की जनता का बहुत फायदा होगा. अगर बहुमत नहीं मिला तो हम यू पी का विकास नहीं कर पाएंगे.'
मालूम है वो कौन से काम हैं जिन्हें करके ये जनता का फायदा और विकास करना चाहते हैं ? वो क़ाम है अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और तीन तलाक का खात्मा.
जैसे ये दो क़ाम हो गए तो नौजवानों को रोजगार मिल जायेगा ,किसानों को अपनी फसल का वाजिब दाम मिल जायेगा .
दूसरी तरफ दलित और अल्पसंख्यकों की मसीहा होने का दम भरने वाली मैडम मायावती जी कहती हैं कि अगर उनकी सरकार आयी तो वो गरीबों का एक लाख तक का कर्ज माफ़ कर देंगी, मूर्तियां और पार्क नहीं बनाएंगी.
ये नहीं बताती हैं कि सोने चाँदी के मुकुट पहनेगी या नहीं ?
जो करोड़पति प्रत्याशी खड़े किये हैं वे अपनी तिजोरियाँ भरेंगे कि नहीं ?एस सी एस सी एक्ट के झूठे मुकदमें कायम होंगें कि नहीं ? सरकारी अफसर और कर्मचारियों को आत्म हत्या करने की हद तक उत्पीड़ित किया जायेगा कि नहीं ?
इन सब के बीच लैपटॉप और मोबाइल देने की बात करते दो लड़कें साइकिल पर सरपट दौड़े जा रहे हैं. उन्हें देखकर लगता है कि ये साइकिल लखनऊ नहीं दिल्ली जाकर रुकेगी . ऐसा इसलिए भी लगता है कि साइकिल में जो टूट फूट हुई या जहाँ से रास्ते में धोखा दे जाने की संभावना थी उसे ठीक कर लिया गया है.पुराने थके माँदे साइकिल सवार बदल गए हैं. अब साइकिल युवा हाथों में है इसलिए तेज तो उसे चलना ही है. बस भैंस और भैंसे से बच कर चलें दिल्ली दूर नहीं है .


                                                   2

सेना का इस्तेमाल राजनीति में नहीं करना चाहिए लेकिन भाजपा के शीर्ष नेता सेना की सर्जिकल स्ट्राइक को वोट पाने का जरिया बनाये हुए हैं .लगभग हर रैली में सर्जिकल स्ट्राइक को अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताकर वो जनता से वोट करने की अपील कर रहे हैं .उनका ये भी कहना है कि वो राष्ट्र भक्त हैं, इसलिए ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक करते रहेंगे .
सब जानते हैं कि सेना जरुरत पड़ने पर ऐसी कार्यवाही करती रहती है .ऐसी किसी कार्यवाही का ज्यादा प्रचार नहीं किया जाता है क्योंकि ये उनकी रणनीतिक सफलता के लिए जरुरी होता है .लेकिन काम से ज्यादा प्रचार में यकीन रखने वाले ढपोर शंखी छदम राष्ट्रवादी हर अच्छे बुरे काम को अपनी राजनीति चमकने में इस्तेमाल करते रहते हैं .
ये ढपोर शंखी छदम राष्ट्रवादी सरहद की हिफाजत कर रहे सैनिकों को भरपेट रोटी भी खाने को नहीं देते हैं .रोटी माँगने वालों का दमन करने में इनकी देशभक्ति आड़े नहीं आती है .
किसानों,जवानों नौजवानों को भूखा रखने वाली देशभक्ति एक ढोंग के सिवा कुछ नहीं है. बड़बोले ढोंगी नेताओं को सबक सिखाने का ये सही वक्त है .आओ उन्हें ऐसा सबक सिखाएं जो वो कभी न भूल पाएं .