गुरुवार, 29 नवंबर 2018

राहुल का गोत्र

है और बुनियादी यहाँ एक इन्टरनेशनल सर्वधर्मसमावेशी परिवार के वारिश से भी उसका गोत्र पूछा जा सकता है इसमें कुछ हैरान होने की बात नहीं है, हैरत की बात तो ये है कि गोत्र बताया भी जा रहा है। बताने वाला अपने बारे में कितना निश्चित है ये कहना तो मुश्किल है लेकिन पूछने वाले बिल्कुल भी सन्तुष्ट नहीं हैं। वे कह रहे हैं कि गोत्र नाना नानी से नहीं दादा दादी से से जाना जाता है। अतः राहुल गाँधी अपने दादा का गोत्र बतायें। अब क्यूँकि राहुल गाँधी के दादा फिरोज गाँधी पारसी हैं वो ब्राह्मण नहीं हैं इसलिये उनका गोत्र वो नहीं हो सकता है जो पण्डित नेहरू का है। कान्ग्रेस के लोग कह रहे हैं कि गोत्र मातृ कुल से भी चलता है। विरोधी कह रहे हैं कि फिर सोनिया गाँधी का गोत्र बताओ। मतलब ये कि धर्म सम्प्रदाय जाति की घ्रणा फैलाने के बाद अब ये कुल गोत्र का टकराव चाहते हैं। एक ऐसे समाज में जहाँ ऊँच नीच के ऐसे हिकारत के भाव गहरे जड़ जमाये हों और उन्हें बढावा भी दिया जाता हो वहाँ समता, समानता, उदारता की आस रखना व्यर्थ है। ये वही लोग हैं जो उन धार्मिक समुदायों से स्वयं को श्रेष्ठ बताते है जहाँ किसी भी देश,धर्म और जाति के लोग बराबरी के व्यवहार के हकदार हैं। ये लोग ऐसी मानसिक जकड़बन्दी से ग्रस्त हैं कि किसी भी सूरत में अपने धार्मिक समूह में बाहरी व्यक्ति के लिये कोई जगह नहीं रखते हैं। असल में बाहरी क्या इन्हें अपने ही उन लोगों से बहुत परेशानी रहती है जिन्हें ये नीच जात समझते हैं। और ये नीच जात कोई खास जाति नहीं है सब जाति के लोग यहाँ स्वयं को उच्च और दूसरे को नीच जाति का समझते हैं। फिर भी दावा ये कि हम हिन्दुओं को संगठित कर शक्तिशाली समाज बनायेंगे और गैर हिन्दूओं का मुकाबला करेंगे। क्या जिस समाज में जाति और सम्प्रदाय के बाद कुल और गोत्र का झगड़ा खड़ा किया जा रहा हो वो कभी संगठित और शक्तिशाली हो सकता है? इतिहास गवाह है कि हमारा समाज ऐसी सोच से गर्त में चला गया है, शक्तिशाली नहीं हुआ है। लेकिन ऐसी दकियानूसी सोच के लोग आज इस कदर हावी हैं कि राहुल गाँधी उनसे भी एक कदम आगे बढकर स्वयं को पक्का हिन्दू साबित करने में ही अपना भविष्य सुरक्षित समझ रहे हैं।
    धर्म निरपेक्षता की सोच की परिणति पूर्णतः धर्म सम्प्रदाय,जाति विहीन समाज के निरमाण में होनी चाहिये थी किन्तु वह.सर्व धर्म समभाव से बढकर अपने अपने धर्म जाति समूह के अन्धविश्वाशी सशक्तिकरण में बदल गयी है। ये हमारी प्रगति नहीं अधोगति है। राहुल गाँधी से इस अधोगति की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने बहुत निराश किया है। वे अपनी इस रणनीति से चुनाव भले ही जीत जायें लेकिन साम्प्रदायिक ताकतों से नहीं जीत सकते है और समाज को आगे तो बिल्कुल नहीं ले जा सकते हैं। 

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