वो धरने पर बैठे किसान
मुट्ठी भींचे वो नौजवान |
नंगे पैरों बढ़ते जाते
गुंजाते धरती आसमान |
वो किस चक्की में दले गए ?
वो किस छलिया से छले गए ?
इतिहास बदलना था उनको
क्या स्वयं बदलते चले गए ?
जो नहीं वक्त पर जगते हैं
परिवर्तन से खुद डरते हैं |
जीते रहते हैं घुट घुटकर
न कुछ हालात बदलते हैं |
उनको न मिलेगा कहीं मान
धरती ढूँढो या आसमान |
सब धर्म जात सब क्षेत्र देश
उनकी हेतु बिलकुल समान |
ये जग उसका धरती उसकी
उसका अम्बर उसके सपने |
जो सीना तान खड़ा होगा
हालात बदलने को अपने |
मौसम कितना भी हो खराब
मौसम है एक दिन बदलेगा |
इस लम्बी स्याह रात से ही
फिर लाल सवेरा निकलेगा |
इस अंधकार में हमको बस
एक दीप जलाये रखना है |
फिर से सूरज के उगने तक
लौ हमें बचाये रखना है |
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