रामायण का एक प्रसंग है।सीता की खोज के लिये निकला हुआ सुग्रीव का वानर दल विचार विमर्श के लिये बैठा हुआ है। सामने विशाल समुद्र लहरा रहा है। जिसे लांघकर लंका में जाकर सीता जी का पता लगाना है। सवाल ये है कि समुद्र को कौन लाघेंगा ? कैसे लाघेंगा ?
एक से एक बलशाली वानर उछल कूद कर रहा है. कोई 10 योजन जाने का दावा कर रहा है कोई बीस योजन। लेकिन लंका तो पूरे सौ योजन पर है और फिर सही सलामत वापिस भी आना है वहॉं ना जाने रावण के राक्षस सैनिक क्या बर्ताव करें। अगर वापिस ही ना आये तो जाने का क्या फायदा है?
अंगद जा सकता है लेकिन उसे कैसे भेजा जाये ? वह तो युवराज है ? कहीं कुछ हो हवा गया तो ? नहीं नहीं इतना बडा रिस्क नहीं लिया जा सकता है । महाराज सुग्रीव को क्या मुँह दिखायेंगे।
तभी बूढे जामवंत की निगाह अकेले चिन्तामग्न बैठे हनुमान पर पडी। उन्होंने सोचा इसे भेजना ठीक रहेगा। लेकिन ये तो मुँह सिये बैठा है कुछ बोलता ही नहीं है। इसे थोडा उकसाना पडेगा। जामवन्त हनुमान के पास जाते है और कहते हैं. वीरवर कैसे खामोष हो? ' का चुप साध रहे बलवाना ?'
हनुमान ने जैसे कुछ सुना ही नहीं । वे सोचे चले जा रहे हैं. क्या सोच रहे है ?इसका कुछ उल्लेख किसी रामायण में नहीं मिलता है इसलिये अनुमान लगाया जा सकता है ।
हनुमान सोच रहे हैं। ये क्या चक्कर है जो भी जबर होता है स्त्री को उठा ले जाता है। बाली ने सुग्रीव की पत्नि तारा छीन ली तो सुग्रीव ने राम की मदद से बाली को मारकर फिर तारा को फिर अपनी पत्नि बना लिया। अब राम सुग्रीव की मदद से रावण को मारकर अपनी पत्नि को लायेगा। मैं ठहरा ब्रहमचारी स्त्री के लिये युद्ध क्यूॅं होता है समझ में नहीं आता लेकिन युद्ध लडना मेरे जैसे योद्धाओं को ही पडता है और ये राजा राजकुमार महलों में अपनी पत्नियों के साथ जाकर सो जाते हैं।
ना सुग्रीव हमारे लिये लडा था ना राम किसी आम आदमी के लिये लड रहा है। ये लडे हैं सिर्फ अपने मान सम्मान के लिये। स्त्री के मान सम्मान के लिये भी ये युद्ध नहीं है। अगर ऐसा होता तो बाली के वध के बाद उसकी स्त्री तारा राजकाज देखती और युवराज अंगद उसकी सहायता करते लेकिन नहीं गददी पर स्त्री नहीं बैठ सकती है। गददी पर सिर्फ पुरूष ही बैठेंगें और युद्ध को नाम दिया जायेगा स्त्री की मान रक्षा के लिये लडा गया युद्ध।
ऐसा युद्ध जिसमें अनेक स्त्री विधवा होकर दारूण दुख पायेंगी। पुरूष मरकर वीरगति को प्राप्त होंगे स्वर्ग सुख पायेंगे और स्त्रियॉं इहलोक में दारूण दुख पायेंगी। फिर भी सब मृत योद्धाओं के ही गीत गाते रहेंगें स्त्रियॉं जो हर पल जीवन संग्राम लडेंगी उसके गीत कोई महाकवि नहीं गायेगा। क्या उनका संग्राम किसी महायुद्ध से कम है ?
.'का चुप साध रहे बलवाना' जामवंत पुकारे जा रहा है- वीर हनुमान तुम रामकाज के लिये ही बने हो ? राम को तुम पर अगाध विश्वास है? समस्याओं को ये बवंडर, ये विशाल समन्दर तुम्हीं लांध सकते हो ? तुम्हारे समान बलशानी कौन है ?
.जब कहा गया तुम्हारे समान बलशाली कौन है? तो हनुमान को नशा सा होने लगा ? अपने बल विक्रम की प्रंशसा किसे नहीं सुहाती है? हाँ वह सबसे बलशाली है। वह यह समुद्र क्या अनेक समुद्र लांघ सकता है।
.हनुमान ने जोर का हुकारा मारा। सारा वानर दल उत्साह से चीख उठा। हनुमान ने समुद्र पार करने को छलांग लगा दी। कुछ ही समय बाद वो लंका में था। लंका में सब उसके लिये अजनवी थे। कोई उसके बल विक्रम से प्रभावित नहीं था। प्रभावित होना तो दूर कोई उसे पहचानता ही ना था। यह स्थिति हनुमान को बहुत अखर रही थी कि कोई उसे कुछ माने ही नहीं। उसने ध्यान आकर्षित करने के लिये तोडफोड शुरू कर दी।
फिर वही हुआ जो ऐसे में होना था। कानून व्यवस्था के रखवाले आ गये. उन्होंने हनुमान को दण्डित करने के लिये गिरप्तार करना चाहा। हनुमान ने उनकी हडडी पसली तोड दी। कानून व्यवस्था के रक्षकों को क्रोध आ गया। अब सवाल व्यवस्था का नहीं उनकी इज्जत का था उनके रूआब का था। वे अधिक संख्या में एक जुट होकर टूट पडे। हनुमान भी राम का काम भूलकर अपने बल विक्रम की धाक जमाने में जुट गये।
हर लडाई मामूली बात से शुरू होती हैऔर व्यक्तिगत मान अपमान के लिये लडी जाती है। जिसे कभी देश और कभी धर्म रक्षा के युद्ध का नाम दे दिया जाता है। सरहद पर गल्ती से चलने वानी एक गोली भी अगर किसी सैनिक को लग जाती है तो उसके साथी अपने साथी को लगी चोट का बदला लेने के लिये गोलियॉं चलाने लगते हैं। जबाब में दूसरे पक्ष के सैनिक भी अपने बचाव में गोलियॉं दागने लगते है। बीच बीच में गाली गलौच के साथ देश, धर्म की जय के नारे लगने लगते है। लडाई शुरू हो जाती है। अगर राजनीतिक अनुकूलता होती है तो यह लडाई अक्सर बिना किसी निर्णायक नतीजे के भारी नुकसान के साथ ही बन्द होती है। हर छोटे बडे युद्ध की इतनी सी ही कहानी है।
देश या धर्म के लिए युद्ध की बात एक बड़े झूठ के सिवा कुछ नहीं है.
एक से एक बलशाली वानर उछल कूद कर रहा है. कोई 10 योजन जाने का दावा कर रहा है कोई बीस योजन। लेकिन लंका तो पूरे सौ योजन पर है और फिर सही सलामत वापिस भी आना है वहॉं ना जाने रावण के राक्षस सैनिक क्या बर्ताव करें। अगर वापिस ही ना आये तो जाने का क्या फायदा है?
अंगद जा सकता है लेकिन उसे कैसे भेजा जाये ? वह तो युवराज है ? कहीं कुछ हो हवा गया तो ? नहीं नहीं इतना बडा रिस्क नहीं लिया जा सकता है । महाराज सुग्रीव को क्या मुँह दिखायेंगे।
तभी बूढे जामवंत की निगाह अकेले चिन्तामग्न बैठे हनुमान पर पडी। उन्होंने सोचा इसे भेजना ठीक रहेगा। लेकिन ये तो मुँह सिये बैठा है कुछ बोलता ही नहीं है। इसे थोडा उकसाना पडेगा। जामवन्त हनुमान के पास जाते है और कहते हैं. वीरवर कैसे खामोष हो? ' का चुप साध रहे बलवाना ?'
हनुमान ने जैसे कुछ सुना ही नहीं । वे सोचे चले जा रहे हैं. क्या सोच रहे है ?इसका कुछ उल्लेख किसी रामायण में नहीं मिलता है इसलिये अनुमान लगाया जा सकता है ।
हनुमान सोच रहे हैं। ये क्या चक्कर है जो भी जबर होता है स्त्री को उठा ले जाता है। बाली ने सुग्रीव की पत्नि तारा छीन ली तो सुग्रीव ने राम की मदद से बाली को मारकर फिर तारा को फिर अपनी पत्नि बना लिया। अब राम सुग्रीव की मदद से रावण को मारकर अपनी पत्नि को लायेगा। मैं ठहरा ब्रहमचारी स्त्री के लिये युद्ध क्यूॅं होता है समझ में नहीं आता लेकिन युद्ध लडना मेरे जैसे योद्धाओं को ही पडता है और ये राजा राजकुमार महलों में अपनी पत्नियों के साथ जाकर सो जाते हैं।
ना सुग्रीव हमारे लिये लडा था ना राम किसी आम आदमी के लिये लड रहा है। ये लडे हैं सिर्फ अपने मान सम्मान के लिये। स्त्री के मान सम्मान के लिये भी ये युद्ध नहीं है। अगर ऐसा होता तो बाली के वध के बाद उसकी स्त्री तारा राजकाज देखती और युवराज अंगद उसकी सहायता करते लेकिन नहीं गददी पर स्त्री नहीं बैठ सकती है। गददी पर सिर्फ पुरूष ही बैठेंगें और युद्ध को नाम दिया जायेगा स्त्री की मान रक्षा के लिये लडा गया युद्ध।
ऐसा युद्ध जिसमें अनेक स्त्री विधवा होकर दारूण दुख पायेंगी। पुरूष मरकर वीरगति को प्राप्त होंगे स्वर्ग सुख पायेंगे और स्त्रियॉं इहलोक में दारूण दुख पायेंगी। फिर भी सब मृत योद्धाओं के ही गीत गाते रहेंगें स्त्रियॉं जो हर पल जीवन संग्राम लडेंगी उसके गीत कोई महाकवि नहीं गायेगा। क्या उनका संग्राम किसी महायुद्ध से कम है ?
.'का चुप साध रहे बलवाना' जामवंत पुकारे जा रहा है- वीर हनुमान तुम रामकाज के लिये ही बने हो ? राम को तुम पर अगाध विश्वास है? समस्याओं को ये बवंडर, ये विशाल समन्दर तुम्हीं लांध सकते हो ? तुम्हारे समान बलशानी कौन है ?
.जब कहा गया तुम्हारे समान बलशाली कौन है? तो हनुमान को नशा सा होने लगा ? अपने बल विक्रम की प्रंशसा किसे नहीं सुहाती है? हाँ वह सबसे बलशाली है। वह यह समुद्र क्या अनेक समुद्र लांघ सकता है।
.हनुमान ने जोर का हुकारा मारा। सारा वानर दल उत्साह से चीख उठा। हनुमान ने समुद्र पार करने को छलांग लगा दी। कुछ ही समय बाद वो लंका में था। लंका में सब उसके लिये अजनवी थे। कोई उसके बल विक्रम से प्रभावित नहीं था। प्रभावित होना तो दूर कोई उसे पहचानता ही ना था। यह स्थिति हनुमान को बहुत अखर रही थी कि कोई उसे कुछ माने ही नहीं। उसने ध्यान आकर्षित करने के लिये तोडफोड शुरू कर दी।
फिर वही हुआ जो ऐसे में होना था। कानून व्यवस्था के रखवाले आ गये. उन्होंने हनुमान को दण्डित करने के लिये गिरप्तार करना चाहा। हनुमान ने उनकी हडडी पसली तोड दी। कानून व्यवस्था के रक्षकों को क्रोध आ गया। अब सवाल व्यवस्था का नहीं उनकी इज्जत का था उनके रूआब का था। वे अधिक संख्या में एक जुट होकर टूट पडे। हनुमान भी राम का काम भूलकर अपने बल विक्रम की धाक जमाने में जुट गये।
हर लडाई मामूली बात से शुरू होती हैऔर व्यक्तिगत मान अपमान के लिये लडी जाती है। जिसे कभी देश और कभी धर्म रक्षा के युद्ध का नाम दे दिया जाता है। सरहद पर गल्ती से चलने वानी एक गोली भी अगर किसी सैनिक को लग जाती है तो उसके साथी अपने साथी को लगी चोट का बदला लेने के लिये गोलियॉं चलाने लगते हैं। जबाब में दूसरे पक्ष के सैनिक भी अपने बचाव में गोलियॉं दागने लगते है। बीच बीच में गाली गलौच के साथ देश, धर्म की जय के नारे लगने लगते है। लडाई शुरू हो जाती है। अगर राजनीतिक अनुकूलता होती है तो यह लडाई अक्सर बिना किसी निर्णायक नतीजे के भारी नुकसान के साथ ही बन्द होती है। हर छोटे बडे युद्ध की इतनी सी ही कहानी है।
देश या धर्म के लिए युद्ध की बात एक बड़े झूठ के सिवा कुछ नहीं है.
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