मंगलवार, 14 मई 2019

गजल -वो सवाल करता है हमसे भूख और बेकारी के।

वो सवाल करता है हमसे भूख और बेकारी के।
हम उत्तर देते जाते हैं दुश्मन पर बमबारी के।

पूछ रहा है पाँच साल में लकवा क्यूँ है मार गया?
उसको कारण बता रहे सत्तर साला बीमारी के ।

हम होते तो पैदा होते ही मंगल पर जा चढ़ते
बता रहे हो क्या हिसाब तुम बिजली,खेती क्यारी के ।

इस शाखा से उस शाखा तक कूद फाँद हम आये हैं
हमको आते हैं हथकंडे सारे छापामारी के ।

इंतखाब वाले हों या फिर इन्कलाब लाने वाले
कैसे हमसे ले पायेंगे हिस्से वो हकदारी के ।

या तो मानों हम हैं योगी, पहुँचे हुये फकीर बड़े
वरना झूठे सच्चे किस्से सुनना तुम महतारी के ।

तुम शहीद के कुनबे वाले हम भी संघी संस्कारी
ज़ख्म कुरेंदेंगे देखेंगे कैसै घाव कटारी के ।

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