माथे पर रखे न होते अगर धर्म के झण्डे
सोचो ठाली बैठे रहते कठमुल्ला और पण्डे |
और सियासी बाजीगर भी हमको नहीं लड़ाते
एक बराबर होता हमको फ्राई डे और संडे |
सोचो ठाली बैठे रहते कठमुल्ला और पण्डे |
और सियासी बाजीगर भी हमको नहीं लड़ाते
एक बराबर होता हमको फ्राई डे और संडे |
सिर्फ कुल्हाड़ी का कसूर ना पेड़ों के कटने का
कुर्सी की भी हवश रही कुछ कद ऊँचा करने का |
और हमारी ख्वाहिश ने भी कम आराम ना चाहा
ए सी ही मजा लिया शीतल समीर झरने का |
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