बहुत रहे बंधन में, बहने दो बहाव में
जिया नहीं जाता है अब ज्यादा तनाव में ||
ऊँच नीच की बातें, नैतिकता की नसीहत
रखना ध्यान सदा ही कहीं भी हो न फजीहत |
जो भी नियम कायदे हैं सबका हो पालन
और टूटने पाए कहीं भी न अनुशासन |
इससे रहता है मन अपना सदा ताव में |
जिया नहीं जाता है अब ज्यादा तनाव में ||
इस तनाव ने मुझको बना दिया है पागल
ललक रहा मन बुला रहा है उड़ता बादल |
उमर नहीं पर पर्वत पर ऊँचे चढ़ना है
एक बार उड़ते बादल के संग उड़ना है |
शिथिल हुए जो पांव उठेगें पुन: चाव में |
जिया नहीं जाता है अब ज्यादा तनाव में ||
मैं अपने पांवों की तोड़ रहा जंजीरें
मैंने उठा लिए हैं अपने ढोल मजीरे |
हानि लाभ बताने वालों मत समझाना
समझदार लोगों में वापिस नहीं बुलाना |
गाता हूँ मैं गीत प्रीत की घनी छांव में |
जिया नहीं जाता है अब ज्यादा तनाव में ||
जिया नहीं जाता है अब ज्यादा तनाव में ||
ऊँच नीच की बातें, नैतिकता की नसीहत
रखना ध्यान सदा ही कहीं भी हो न फजीहत |
जो भी नियम कायदे हैं सबका हो पालन
और टूटने पाए कहीं भी न अनुशासन |
इससे रहता है मन अपना सदा ताव में |
जिया नहीं जाता है अब ज्यादा तनाव में ||
इस तनाव ने मुझको बना दिया है पागल
ललक रहा मन बुला रहा है उड़ता बादल |
उमर नहीं पर पर्वत पर ऊँचे चढ़ना है
एक बार उड़ते बादल के संग उड़ना है |
शिथिल हुए जो पांव उठेगें पुन: चाव में |
जिया नहीं जाता है अब ज्यादा तनाव में ||
मैं अपने पांवों की तोड़ रहा जंजीरें
मैंने उठा लिए हैं अपने ढोल मजीरे |
हानि लाभ बताने वालों मत समझाना
समझदार लोगों में वापिस नहीं बुलाना |
गाता हूँ मैं गीत प्रीत की घनी छांव में |
जिया नहीं जाता है अब ज्यादा तनाव में ||
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