हम मेहनतकश आजाद रहे हैं खुले आसमां के नीचे
ईश्वर मंदिर में कैद हुआ, बैठा है वो आँखें मीचे |
बंदी है लौह सलाखों में, पत्थर की बड़ी दीवारों में
चिपका रहता दीवारों पर बिकता छपकर इश्तहारों में |
ताबीजों में बाँधा उसको, फूँकों से उसे उड़ाया है
जब किसी काम का नहीं रहा पानी में उसे बहाया है |
कुछ शेष रहा तो पड़ा रहा पत्थर से जड़ी मजारों में
कुछ टुकड़े टुकड़े बाँट दिया भक्तों की खड़ी कतारों में |
लेकिन हम मेहनतवालों ने कब उसको शीश झुकाया है
जो कुछ भी हमको मिला यहाँ अपनी मेहनत से पाया है |
फिर क्यों हम जै जैकार करें,क्यूँ माने उसको हम महान
कर लिया रतजगा बहुत दिनों, सो जाएं चादर बड़ी तान।
ईश्वर मंदिर में कैद हुआ, बैठा है वो आँखें मीचे |
बंदी है लौह सलाखों में, पत्थर की बड़ी दीवारों में
चिपका रहता दीवारों पर बिकता छपकर इश्तहारों में |
ताबीजों में बाँधा उसको, फूँकों से उसे उड़ाया है
जब किसी काम का नहीं रहा पानी में उसे बहाया है |
कुछ शेष रहा तो पड़ा रहा पत्थर से जड़ी मजारों में
कुछ टुकड़े टुकड़े बाँट दिया भक्तों की खड़ी कतारों में |
लेकिन हम मेहनतवालों ने कब उसको शीश झुकाया है
जो कुछ भी हमको मिला यहाँ अपनी मेहनत से पाया है |
फिर क्यों हम जै जैकार करें,क्यूँ माने उसको हम महान
कर लिया रतजगा बहुत दिनों, सो जाएं चादर बड़ी तान।
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