गुरुवार, 2 जनवरी 2020

जिंदाबाद/मुर्दाबाद

नया साल सबको मुबारक हो। सब खुश रहें, आबाद रहें यही मेरी शुभकामना है। मेरा ख्याल है कि मेरे सब दोस्त भी यही चाहेगें कि उनके सब जान पहचान वाले अडौसी पडौसी और वो भी जिन्हें वो नहीं भी जानते हैं वो सब खुश रहें, आबाद रहें, सर सब्ज हों, कामियाब हों। लेकिन क्या कोई ऐसा भी है जो चाहता है कि सिर्फ वही खुश रहे, आबाद रहे बाकि कोई आबाद न रहे? मेरे ख्याल से ऐसा कोई नहीं चाहता है। क्यूंकि ऐसा चाहने का मतलब है कि वह आदमी किसी बस्ती में नहीं मरघट में रहता है। जहां सिर्फ मुर्दें जलते हैं बाकि पूर्ण शान्ति है। ऐसी जगह रहने की कामना कौन कर सकता है? सब चाहते हैं कि वो हंसी खुशी के माहौल में रहें। हंसी खुशी का माहौल वहीं हो सकता है जहां पडौस में खुशियां हों, कोई पडौसी दुखी न हो। फिर पडौसी को जिन्दाबाद कहने में क्या हर्ज है? वो जिन्दा आबाद रहेंगे तभी तो माहौल खुशगवार रहेगा। अगर वो मुर्दा हो गये तो कैसे माहौल में खुशियां होंगी? इसलिये हम चाहते हैं कि सब जिन्दाबाद हों।लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि पडौसी को जिन्दाबाद बोलना देशद्रोह है। खासतौर से पश्चिम के उस पडोसी को जो हमारा छोटा भाई है। छोटे भाई से गिला शिकवा समझ में आता है, घर का बंटवारा हो तो तो बंटवारें का दर्द दिल में रहता ही है लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि भाई भाई नहीं रहता है और वो जिन्दाबाद भी न हो? मेरी समझ में तो ये नासमझी की बात है। बड़े होने के नाते ज्यादा समझदार होने की अपेक्षा भी हमसे ही रहेगी। इसलिये जिन्दाबाद कहने सुनने में एतराज नहीं होना चाहिये।आओ हम सबको जिन्दाबाद कहें खुश आमदीद कहें। नया साल उन्हें भी मुबारक जो हमारे पडौसी हैं या परदेशी हैं।

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