शुक्रवार, 3 जनवरी 2020


बहुत अकड़े दिसम्बर में
गये जकड़े दिसम्बर में ।
उन्हें राहत नया दे साल
जो पकड़े दिसम्बर में।

बगावत के उन्हें तुम गीत गाकर क्यूं डराते हो?
मौहब्बत के तरानों से भी जिनका दिल दहलता हैं।
करें वो लाख कौशिश पर हकीकत जानते हैं वो
बड़ा भी बांध ढह जाता कि जब दरिया मचलता है।

नया बरस नया दिवस नया नया विहान हो
नये बरस में आपके नये स्वप्न महान हों ।
ना बंदिशे कहीं पे हों, ना हों कहीं रूकावटें
उड़ान हौसलों की हो, खुला सा आसमान हो।


बदल जाये अगर मौसम नया ये साल हो जाये
किसी की आंख न हो नम, मुबारक साल हो जाये ।
बहुत खुशियों की न चाहत गमों से बस मिले राहत
हमारी जिन्दगी इतने से ही खुशहाल हो जाये।



उलझते हैं सुलझते हैं,सुलझकर फिर उलझते हैं
ये पेचो ख़म तुम्हारी जुल्फ के कितना मचलते हैं.
हमारा दिल भी दिल है कोई पत्थर तो नहीं है ये 
इन्हें थोड़ा संभालो तुम,तो थोड़ा हम संभलते हैं .

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