रविवार, 12 जनवरी 2020

जन कवि नागार्जुन

जन कवि नागार्जुन हिंदी के बहुचर्चित कवि हैं .अपने जीवनकाल में भी वह चर्चित थे और मृत्यु के वर्षों बाद भी चर्चित हैं. जीवित रहते जहाँ वे अपने तीखे तेवर और स्पष्टवादिता के लिए चर्चित थे आज वे दूसरे अवांक्षित कारण  से चर्चा में है. वे इतने जनप्रिय कवि थे कि उनके साहित्य सृजन को लेकर  कभी सवाल नहीं उठाये गए. हर तरफ वाह वाही का माहौल रहा .अनेक कविताएं हैं जिनका युवावस्था में मैं भी गर्व से उल्लेख करता रहा लेकिन पिछले कई वर्षों से उनकी कुछ बहुचर्चित कविताओं को नयी नजर से देखने का मन कर रहा है .इस पर विस्तार से लिखने का भी मन है लेकिन संक्षिप्त चर्चा अभी करने का मन हो रहा है.
 27  मई 1977  को पटना जिले के बेलछी  गाँव में तेरह दलितों को जिन्दा जला दिया गया था. सारे देश में आक्रोश की लहर फ़ैल गयी थी. नागार्जुन ने उस घटना को लेकर एक बहुचर्चित कविता 'हरिजन गाथा' लिखी जिसमें वे एक नवजात दलित शिशु की हथेली देखकर शिशु का भाग्य वाचन करते हैं, कविता कि कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं -

'देख रहा था नवजातक के
दाएँ कर की नरम हथेली
सोच रहा था-- इस गरीब ने
सूक्ष्म रूप में विपदा झेली

आड़ी-तिरछी रेखाओं में
हथियारों के ही निशान हैं
खुखरी है, बम है, असि भी है
गंडासा-भाला प्रधान हैं

दिल ने कहा-- दलित माँओं के
सब बच्चे अब बागी होंगे
अग्निपुत्र होंगे वे अन्तिम
विप्लव में सहभागी होंगे

दिल ने कहा--अरे यह बच्चा
सचमुच अवतारी वराह है
इसकी भावी लीलाओं की
सारी धरती चरागाह है

दिल ने कहा-- अरे हम तो बस
पिटते आए, रोते आए !
बकरी के खुर जितना पानी
उसमें सौ-सौ गोते खाए !

दिल ने कहा-- अरे यह बालक
निम्न वर्ग का नायक होगा
नई ऋचाओं का निर्माता
नए वेद का गायक होगा

होंगे इसके सौ सहयोद्धा
लाख-लाख जन अनुचर होंगे
होगा कर्म-वचन का पक्का
फ़ोटो इसके घर-घर होंगे

दिल ने कहा-- अरे इस शिशु को
दुनिया भर में कीर्ति मिलेगी
इस कलुए की तदबीरों से
शोषण की बुनियाद हिलेगी

दिल ने कहा-- अभी जो भी शिशु
इस बस्ती में पैदा होंगे
सब के सब सूरमा बनेंगे
सब के सब ही शैदा होंगे.'

यह हिंदी काव्य जगत में बहुचर्चित बहुप्रशंसित कविता है .लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये किसी भी तरह से क्रांतिकारी कविता है . नवजात दलित शिशु की हथेली देखकर भागयवाचन किया जा रहा है जबकि इस भाग्यवाद ने ही सबसे ज्यादा शोषण और दमन के विरुद्ध खड़ा होने से रोका है . ये भाग्यवाद ही मनुवादियों और सामंतों का सबसे बड़ा हथियार रहा है .इस भाग्यवाद में यकीन करते हुए कोई कैसे दलितों के हक़ की लड़ाई लड़ सकता है? लेकिन महाकवि नागार्जुन यहां भी नयी ऋचाओं और नए वेद के सृजन की बात कर रहे हैं. मतलब इनकी आस्था वहीँ है जहाँ से उत्पीड़न,शोषण और दमन का जन्म होता है.
दूसरी कविता जो तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी जी के विरोध में हैं, में वो लिखते हैं
'देखो यह बदरंग पहाड़ी गुफा सरीखा
किस चुड़ैल का मुँह फैला है
महाकुबेरों की रखैल है
यह चुडैल है.'
यह कविता बेहद क्रांतिकारी कविता मानी गयी लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आया कि श्रीमती इंदिरा गाँधी को चुड़ैल कहना और उनके मुँह को पहाड़ी गुफा बतलाना कौन सी क्रांतिकारिता  है? कौन सी सभ्यता है
? अगर ऐसा है तो जे एन यू की लड़कियों को रंडी बताने वाले संघियों और इंदिरा गांधी को चुड़ैल बताने वाले जनवादियों में फर्क क्या है ?
 ये कविताएं और ये क्यों और दूसरी बहुत सी कवितायें नागार्जुन के अंदर बैठे ब्राह्मणवाद को प्रदर्शित करती हैं जो दलितों और स्त्रियों के प्रति बहुत हिंसक है .
 विस्तृत आलेख फिर कभी लिखूंगा, अभी जल्दबाजी में इतना लिखा ही काफी है .
 


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