न हिन्दू न इस्लामी हैं
हम तो बस हक़ के हामी हैं.
रावलपिंडी, दिल्ली, ढाका
हम एक रहेंगे सुन काका .
वैसे हम पंडित शेख हैं.
हम एक हैं, हम एक हैं .
इस पार हैं , उस पार हैं
हम लम्बी बड़ी कतार हैं.
दस बीस तुम या सौ पचास
हम लाखों लाख हजार हैं .
अब एक हमारी टेक है .
हम एक हैं, हम एक हैं .
टूटी फूटी तस्वीर नहीं
रिसते जख्मों की पीर नहीं
मंजूर नहीं हमको कोई
नफ़रत की बड़ी लकीर कहीं
अपना बस ये सन्देश है .
हम एक हैं, हम एक हैं .


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