रविवार, 23 फ़रवरी 2020

शाहीन बाग़ आंदोलन

ये तो भविष्य की बात है कि नागरिकता संशोधन एक्ट कायम रहे या ख़त्म हो जाए या उसमें कुछ और संशोधन हो कर लागू हो जाए लेकिन एक बात तय है कि इसके विरोध में महिलाओं का खासतौर से मुस्लिम महिलाओं का जो सामूहिक नेतृत्व प्रकट हुआ है या विकसित हुआ है वो भारत के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है| कुछ वक्त बाद जब शाहीन बाग़ जैसे प्रतिरोध का निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाएगा तो कई ऐसे बिंदू रेखांकित किये जाएंगे जो पहले के किसी आंदोलन में देखने को नहीं मिले होंगे|
मेरी नजर में इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि इसने देशप्रेम और सर्वधर्म समभाव का परचम ऊँचा उठाये रखा है| तमाम तरह के  अतिवादियों के हावी होने की तमाम कोशिशों के बावजूद आंदोलनकारियों ने अपने धैर्य और अपनी पृथक पहचान को बनाये रखा है| इससे भी बड़ी  उपलब्धि यह है कि महिला आंदोलनकारियों ने पेशेवर नेताओं से भी ज्यादा कुशल तरीके से अपने मुद्दों को मीडिया और आमजन के सामने रखने में महारत दिखाई है| उनकी  बौद्विकता और स्पष्टवादिता को देखकर हैरत होती है| एक ऐसे समाज में जहाँ महिलाओं की पहचान दड़बे  में बंद मुर्गी जैसी हो उसका ये प्रखर रूप में हमें अपने सुन्दर भविष्य के प्रति आशान्वित करता है. इस आंदोलन में रानीलक्ष्मीबाई,बेगम जीनतमहल,मैडम भीकाजी कामा, और माँ सावित्रीबाई फूले सब एक साथ नजर आ रहे हैं| 
आंदोलनकारियों ने साहित्य को भी जो नए गीत दिये  हैं उनका तेवर भी याद  रखने लायक है| ये नामालूम से कवि वर्तमान साहित्य जगत के सड़ रहे सरोवर में झरने का नया जल भरते दिखाई देते हैं| ये कल के फैज और पाश सिद्ध होंगे ऐसा मेरा विश्वाश है| आप मुझसे असहमत हो सकते हैं ये आपका हक़ है, ये आपकी समझ है लेकिन आप भी एक बार इस आंदोलन को समालोचक की निगाह से देखें और बताएं की इतिहास में ये किस रूप में लिखा जाएगा?

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