रविवार, 1 मार्च 2020

जीवन चक्र

कुछ रोज खिलखिलाता बचपन, कुछ रोज जवानी रहती है
कुछ रोज नया करने कहने की एक कहानी रहती है|
कुछ रोज बुढ़ापे के भी दर्द भरे नग्में गाने पड़ते
कुछ रोज ही धरती पर जीवन की तेज रवानी रहती है |



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हम आजादी मांग रहे हैं भूख से औ बेकारी से 
रोज नयी नफ़रत पैदा कर लड़ने की बीमारी से |
हम आजादी मांग रहे हैं उगते बड़े बबूलों से 
त्रिशूलों की नोकों पर सब लटके सड़े उसूलों से |



हमें मालूम है हम इसलिए खामोश रहते हैं
हमारे बोलने से उनका पिछवाड़ा सुलगता है|

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