बुधवार, 8 अप्रैल 2020

'प्राफुल चाकी' और 'खुदिराम बोस' 30 अप्रैल 1908

भगत सिंह पर चले मुकदमे (जिसमे उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी थी ) को "लाहौर षड्यंत्र केस -१९२९ के नाम से भी जाना जाता है ,, इस मामले को त्वरित गति से निपटाने के लिए तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने ०१ मै १९३० को आपातकाल की घोषणा के साथ एक अध्यादेश भी जारी किया था ,जिसे लाहौर षड्यंत्र मामला अध्यादेश संख्या-३ -१९३० के नाम से जाना जाता है I 'लाहौर षड़यंत्र केस' पाँच मई 1930 को शुरू हुआ ये मुकदमा 11 सितंबर 1930 तक चला था और ०७ अक्तूबर १९३० को सजा सुनाई गयी थी Iपहले से तय समय के अनुसार भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को फांसी देने का दिन 24 मार्च 1931 तय था किन्तु अचानक इसे बदल कर ११ घंटे पहले ही फांसी दे दी गयी थी ( २३ मार्च १९३१ , शाम को ७.३० बजे ,लाहौर जेल में )



बिहार कि राजधानी अज़ीमाबाद(पटना) के मुजाहिदे आज़ादी 'अहमदुल्लाह' से प्रेरित होकर पंजाब के मुजाहिदे आज़ादी 'अबदुल्लाह' ने कलकत्ता हाई कोर्ट के जज 'JP नारमन' का क़त्ल 1871 मे कर दिया , और ख़ैबर का एक पठान 'शेर अली अफ़रीदी' ने तो 8 फ़रवरी 1872 मे 'र्लाड मायो' को क़त्ल कर डाला जो उस वक़्त का 'वाईसराय' था और इनसे प्रेरित होकर बंगाल के 2 लाल 'प्राफुल चाकी' और 'खुदिराम बोस' 30 अप्रैल 1908 को मुज़फ़्फ़रपुर(बिहार) मे जज 'किँगर्फोड' को क़त्ल करने निकले पर ग़लत जगह हमला करने कि वजह कर जज बच गया और उसकी बेटी और पत्नी मारी गईं. खुदीराम बोस तो मुज़फ्फरपुर में पकडे गए पर प्रफुल्ला चाकी रेलगाड़ी से भाग कर मोकामा पहोंच गए. पर पुलिस ने पुरे मोकामा स्टेशन को घेर लिया था दोनों और से गोलियां चली पर जब आखिरी गोली बची तो प्रपुल्ला चाकी ने उसे चूमकर ख़ुद को मार लिया और शहीद हो गए , पुलिस ने उनके शव को अपने कब्जे लेकर उनके सर को काटकर कोलकत्ता भेज दिया ,वहां पर प्रफुल्ला चाकी के रूप में उनकी शिनाख्त हुई । ये बात उस वक़्त की है जब चंद्रशेखर आजाद सिर्फ 2 साल के थे. 'प्रफुल्ल चाकी' से ही प्रेरित हो कर 'चंद्रशेखर आज़ाद' ने ख़ुद को अंग्रेज़ो के हवाले ना करके 27 फ़रवरी 1931 को ख़ुद को गोली मार ली और शहीद हो गए पर अंग्रेज़ के हाथ नही आए frown emoticon

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