बुधवार, 8 अप्रैल 2020

हम जले इसलिए कि अँधेरा न हो

हम जले इसलिए कि अँधेरा न हो'
कैद में चाँद, सूरज.सितारे रहें, पर धरा पर तिमिर का बसेरा न हो .
                                        हम जले इसलिए कि अँधेरा न हो.

तुम अँधेरे के हामी हुए हो तो क्या 
दीप तन्हा हो  कोई डरेगा नहीं 
हार ही जायेंगे सब तिमिर पुत्र ये 
ज्योति का सुत कोई भी मरेगा नहीं
दीप बुझने से पहले जले दूसरे,जो  निशाचर का कोई भी फेरा ना हो .
                                        हम  जले इसलिए कि अँधेरा न हो.

दीप में स्नेह   हो या   लहू  देह  में 
वो  जले ये चले  जिंदगी  है यही  
रौशनी  बस  इसी  का ही ईनाम   है 
जगमगाती  इसी  से है सारी  मही
आँख के सब दिए झिलमिलातें रहें, मोतियाबिंद का एक  डेरा ना हो.
                                             हम  जले इसलिए कि अँधेरा न हो.

लाठियाँ टेकते हम चले उम्र की
अब हमें दो घडी का भी आराम दें
इससे पहले कि हम लड़खड़ायें, गिरें 
ये मशालें, उठें नौजवां थाम लें .
आज भी जंग जारी अंधेरों से है, दोस्तों ये अन्धेंरा घनेरा ना हो .
                                         हम  जले इसलिए कि अँधेरा न हो.





यूपी के श्रावस्ती जिले से दो बार विधायक रहे भगवती प्रसाद की मौत गरीबी में इलाज न करा पाने की वजह से हुई। उनकी कफन तक के लिए पैसे पड़ोसियों ने दिए हैं।

बताया जा रहा है कि विधायक रहते भगवती प्रसाद ने पैसे नहीं कमाए। कुर्सी गई तो चाय बेचने लगे। भगवती प्रसाद ने 1967 में 1600 रुपये में चुनाव लड़ा था और इलाज के लिए पैसे नहीं जुटा पाए।

यह दर्दनाक कहानी राजनीति के उस दौर की है जब गोपीनाथ मुंडे चुनाव में आठ करोड़ रुपये खर्चने की बात कहते हैं।
उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले से दो बार विधायक रहे भगवती प्रसाद की मौत गरीबी में इलाज न करा पाने की वजह से हुई। उनकी कफन तक के वास्ते रुपए पड़ोसियों ने दिए।
यह दर्दनाक कहानी राजनीति के उस दौर की है जब गोपीनाथ मुंडे चुनाव में आठ करोड़ रुपये खर्चने की बात कहते हैं।--रवीश कुमार
एक समय एनडीटीवी के संवाददाता से बातचीत में भगवती प्रसाद ने कहा था, “यह सच है कि हमारे पास पैसे नहीं हैं, लेकिन ईमानदारी है। आज यह कम लोगों के पास है।” पर ईमानदारी उनका इलाज नहीं करा पाई। गंभीर हालत में उन्हें बहराइच के जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनका देहांत हो गया।

बताया जा रहा है कि विधायक रहते भगवती प्रसाद ने पैसे नहीं कमाए। कुर्सी गई तो चाय बेचने लगे। उन्होंने 1967 में 1600 रुपये में चुनाव लड़ा था। वे भारतीय जनसंघ पार्टी से 1967-69 और 1969-74 तक विधायक रहे।

बताया जा रहा है कि आज उस जिले से जो विधायक हैं उनके पास पांच पैट्रोल पंप हैं। देश में ऐसे सैकड़ों प्रतिनिधि हैं, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप है। वे करोड़ों के मालिक हैं। सांसद, विधायक रहते कइयों की आमदनी सौ फीसदी से भी अधिक बढ़ी है। दूसरी तरफ 70 प्रतिशत जनता गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजार रही है। भगवती प्रसाद तो चाय बेचकर अपना गुजारा कर रहे थे।

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