बुधवार, 8 अप्रैल 2020

चंगेज़ खान.......


सन 1163 में मंगोल नस्ल के दादा नाम के एक छोटे से कबीले के सरदार एसुगाई के घर एक बालक का जन्म होता है है, जिसका नाम तेमुची रखा जाता है। 9 साल की उम्र में उसकी शादी उंगीरा कबीले की एक खूबसूरत लड़की बोरताई से तय हो जाती है।कबीलों की रस्म के अनुसार तेमुची आपना घर बनाने के बाद ही दुल्हन को घर ला सकता था।
12 साल की उम्र में तेमुची अपना घर बसा कर अपनी पत्नी बोरताई को घर लाता है। मगर 1181 में दुश्मन कबीले "तातार" के लोग तेमुची के पिता की हत्या कर देते हैं। इसी दौरान मकीत कबीले के लोग तेमुची के कबीले पर हमला कर उसकी पत्नी का अपहरण कर उसकी शादी सिल्चर से कर देते है। यही से तेमुची के संघर्षों की शुरुआत होती है और अपने संघर्षों के बल पर उम्र के चालीसवें पड़ाव पर तेमुची चंगेज़ खान यानी दुनियां के सबसे महान योद्धा का खिताब पाता है।
उस समय मंगोलों में एक प्रथा थी कि यदि कोई व्यक्ति किसी शादीशुदा औरत को दुश्मन से छीनता है तो उसे उस औरत के पति और बच्चों को कत्ल करना पड़ता है। लेकिन जब बारतोई को छीना गया तो दुश्मन 18 साल के युवा चंगेज़ खान को न मार सके। मकीतों कि इसी चूक ने तेमुची को चंगेज़ खान बनने का मौका दिया।
पिता की हत्या, पत्नी के अपहरण के बाद चंगेज़ अकेला था। उसके कबीले के लोग उसे सरदार भी नही मानते थे। लेकिन उसकी मां ने उसका हौसला बढ़ाया। चंगेज़ अपने पिता के दोस्त तुगरिल, जिसे वो चाचा कहता था, को विश्वास में लिया। यही नहीं उसने कुछ छोटे कबीलों से गठबंधन किया और एक छोटी सी सेना खड़ी कर शक्तिशाली मकीत काबिले पर हमले की तैयारी करने लगा। हालांकि चाचा तुगरिल, और ज़मूख जैसे योद्धा मकीतों से लड़ने के पक्ष में न थे, मगर चंगेज़ को अपनी पत्नी को वापस लाकर दुनिया को दिखाना भी था। अतः वो मकीतों से लड़ने पर अडिग रहा। उसका जोश और आत्मविश्वास देख कर तुगरिल और ज़मूखा ने भी युद्ध की इजाज़त दे दी। इस प्रकार चंगेज़ को ताकतवर मकीत कबीले से लड़ने का मौका मिल गया। जिसने उसे तेमुची से चंगेज़ बनने का रास्ता खोल दिया।


    अपने मुँहबोले चाचा और किरात काबिले के सरदार तुगरिल खान से गठबंधन के बाद तेमुची ने 1186में मकीत कबीले पर हमला किया। इतिहासकार लिखते हैं कि हमले में तुगरिल व ज़मूखा किरात सेना को गाजर मूली कक तरह काट रहे थे और तेमुची यानी चंगेज़ अपनी पत्नी के जबरन बने पति सिल्चर को ढूंढ रहा था। क्यों कि मंगोल परंपरा के अनुसार बोरताई से दुबारा शादी के लिए उसके पति और बच्चों का कत्ल ज़रूरी था। आखिर कर वह सिल्चर को मारने में सफल हुआ। इसके बाद वो बारतोई के तम्बू में गया। उस समय बोरताई को पाने की आशा में उसकी खुशी का ठिकाना न था।
लेकिन तंबू में बोरताई उदास थी। वह जयंती थी कि अब उसके एक साल के बच्चे को भी मारा जाएगा। बोरताई के क्रंदन को सुन कर तेमुची ने अपना इरादा बदल लिया। यही नही मंगोल कानून के खिलाफ उसने जूजी नामक बच्चे को अपने बेटे की तरह पालने का वचन भी दिया। लेकिन तुगरिल और ज़मूखा दुश्मन कबीले के बच्चे को पालने के खिलाफ़ थे। अंत मे तेमुची बड़ी माफी तलाफ़ी के बाद तुगरिल और कुरुतलाई यानी मंगोल पंचायत को मनाने में सफल हो गया।
इस प्रकार तेमुची ने मंगोल इतिहास में पहली बार परंपरा को न केवल तोड़ा, बल्कि उसने जूजी को अपने सगे बेटे से बढ़ कर मांन दिया और उसने आगे चल कर जोजी को अपने साम्राज्य में हिस्सा भी दिया।
दुश्मन काबिले के बच्चे को अपने काबिले से लड़ झगड़ कर पालना, उसे अपने राजे के बंटवारे में हिस्सा देना यह साबित करता है कि उसके भीतर जहां एक बर्बर योद्धा छिपा था, वही उनमें संवेदन शीलता भी थी। वहः पढ़ा लिखा नही था, क्यों कि उस समय कोई मंगोल लिपि नही थी। उसके बावजूद वहः अपने तेज़ दिमाग के बल पर बड़े बड़े फैसले लेता था। मंगोलों का कोई धर्म नही था, उनके देवता इलिटेंगीरी थे। मगर उसने कभी दूसरे के धर्म के निरादर के उद्देश्य से कोई धर्मस्थल नही तोड़ा। जिस पर आगे लिखूंगा। फिलहाल उस्की बादशाहत के गुण अवगुण पर चर्चा से पहले उसके बचपन के हालात सामने लाना ज़रूरी था, ताकि आगे का इतिहास स्पष्ट हो सके।

तैमुची यानी चंगेज़ खान अपनी पूर्व पत्नी बारतोई और सौतेले बेटे जूजी को पाने के बाद शासक बनने की राह पर चल पड़ा। पहले उसने मेहनत कर कई छोटे छोटे कबीलों को जोड़ कर एक मंगोल राष्ट्र की शक्ल दी। जो स्वेच्छा से साथ नहीं आये उन्हें ताकत से जीत कर साथ लिया। मगर कई शक्तिशाली कबीले अभी चंगेज़ के दायरे से बाहर थे। बहरहाल उसने 20 हज़ार की फौज गठित कर लिया जो अनेक विजयों के साथ आगे चल कर दो लाख से अधिक हो गई। धीरे धीरे उसका राज्य मध्य एशिया, रूस, योरोप के कुछ इलाके, मध्यपूर्व के अनेक छेत्र से लेकर चीन तक फैल गया। और वहः एक बड़े साम्राज्य का स्वामी ही नही, दुनियां के सबसे क्रूरतम योद्धा भी घोषित कर दिया गया। मगर क्या चंगेज़ दुनिया का सबसे क्रूर और दुर्दांत शासक था? या इतिहास लेखन ने उसके साथ भी छल किया है।
चंगेज़ खान ने जीवन की सबसे बडी विजय और कत्ल आम 1207 में खुरासान को जीत कर किया। ये घटना इस प्रकार है। उस समय खुरासान यानी आज का उज्बेकिस्तान एक वैभवशाली देश था। वहां पर शाह अलाउद्दीन का शासन था। चगेज़ ने व्यापार की दृष्टि से अपने तीन दूत भेजे, जिसमे दो मंगोल और एक मुस्लिम था, जो खुरासानी भाषा जानता था। उस समय खुरासान एक मजबूत देश था। वहां का शासक अलाउद्दीन मंगोलों को गंवार और पिछड़ा मानता था।दर्प मे डूबे अलाउद्दीन ने मंगोल दूतों के नाक कान कटवा दिए तथा मुस्लिम दूत की हत्या कर उसका सर चंगेज़ को भिजवा दिया।

दूतों की हत्या के बाद चंगेज़ ने शाह अलाउद्दीन पर हमला कर दिया। भीषण युद्ध मे अपनी पराजय जान अलाउद्दीन भाग निकला। उसकी तलाश में चंगेज़ ने तकरीबन पूरा खुरासान जल डाला। लाखों कत्ल हुये। लेकिन अलाउद्दीन ज्यों ही पकड़ कर मारा गया, चंगेज़ ने फौरन कत्लेआम रोक दिया। इधर शाह अलाउद्दीन का बेटा जलालुद्दीन बरनी भाग कर भारत की ओर आया। उसने दिल्ली के शासक इल्तुतमिश से शरण मांगी। चंगेज़ भी उसका पीछा करते भस्र्ट कि सरहद तक आया, मगर इल्तुतमिश को चंगेज़ से उलझने में फायदा नज़र न आया। लिहाज उसने जलालुद्दीन को शरण देने से इनकार कर दिया। ये खबर मिलते ही चंगेज़ वापस लौट गया।
इन दो घटनाओं से पता चलता है कि यदि शाह अलाउद्दीन चंगेज़ के बेकसूर दूतों को नही मरता तो खुरासान की तबाही नही होती। चंगेज़ ही नही कोई भी स्वाभिमानी शासक होता तो खुरासान में ऐसी ही तबाही मचाता। दूसरी बात है कि शाह अलाउद्दीन जैसे ही पकड़ा गया चंगेज़ ने फौरन कत्लेआम बंद कर दिया। मतलब साफ है कि खुरासान की तबाही अलाउद्दीन को मारने तक ही थी।
एक और बात। शाह के बेटे जलालुद्दीन को पकड़ने के दौरान चंगेज़ और इल्तुतमिश में युद्ध होना निश्चित था। मगर जब इल्तुतमिश ने उसे शरण देने से इनकार किया तो चंगेज़ भी शांति से वॉपस लौट गया।सीधी सी बात है कि चंगेज़ अकारण क्रूरता नही करता था। उसके युद्ध लड़ने का तरीका भी वही था जो मध्यकाल के हर युद्धों में होता था। अतः उसके अति क्रूर प्रचारित किये जाने की बात सच कम, योरोपीय इतिहासकारों की नस्लीय नफरत अधिक लगती है।

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