जिनके सपनों में पूरा खलिहान समाया था
उनके दिन कट रहे कर्ज में घिरी किसानी से।
उनके दिन कट रहे कर्ज में घिरी किसानी से।
उद्घाटन भर करने आये समारोह में जो
सबने उनके ही स्वागत में गौरव वचन कहे।
और जिन्होंने पूरा रचना तंत्र बनाया था
धन्यवाद तक की सूची में वे इत्यादि रहे।
सच कहने वालों को यहाँ गवाह न मिल पाये
लोग जीतते रहे मुकदमे गलत बयानी से।
लोग जीतते रहे मुकदमे गलत बयानी से।
जिनके आश्वासन थे हम हरियाली लायेंगे
फूलों के आख्यान लिखेंगे रेगिस्तानों में।
वे धरती के सारे सन्दर्भों से कटे हुए
सत्ता की पट कथा लिख रहे रथों विमानों में।
फूलों के आख्यान लिखेंगे रेगिस्तानों में।
वे धरती के सारे सन्दर्भों से कटे हुए
सत्ता की पट कथा लिख रहे रथों विमानों में।
जिनकी आँख लगी ऊपर उतराते मक्खन पर
उनको क्या मतलब मटकी से और मथानी से।
उनको क्या मतलब मटकी से और मथानी से।
अधनंगी बस्ती में रेशम के झंडे उड़ते
खपरैलों पर वादे खुशहाली के लटके हैं।
पगडंडी के चेहरे की झुर्रियाँ पूछती हैं
कहाँ अभी तक पत्थर पर घोषित सुख अटके हैं।
खपरैलों पर वादे खुशहाली के लटके हैं।
पगडंडी के चेहरे की झुर्रियाँ पूछती हैं
कहाँ अभी तक पत्थर पर घोषित सुख अटके हैं।
सभी परिस्थितियों में वे ही प्रासंगिक रहते
जिनके रिश्ते होते हैं मौसम विज्ञानी से
जिनके रिश्ते होते हैं मौसम विज्ञानी से
-------------- डॉ.के.बी.एल. पांडेय
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें