चार अंगुल रथ ऊपर चलता उतरा आज जमीं पर
धर्मराज कुछ तो शर्मिन्दा होंगे पुण्य कमी पर ?
सत्य,न्याय के साथ खड़े रहते अपयश न मिलता
अगर आपका मुख थोड़ा सा सही वक्त पर खुलता।
आप रहे खामोश न बल्कि वध के हो सहयोगी
आज नहीं तो और किसी दिन न्याय समीक्षा होगी ।
जब जनता खुद न्याय तुला पर पाप पुण्य तोलेगी
आज रही खामोश जुबां कल चीख चीख बोलेगी ।
सब स्वीकार करोगे अब तक जितने अधम कर्म हैं
क्यूँ दुर्बल के लिये सख्त, क्यूँ बाहुबली नरम हैं ।
क्यूँ आसन से चिपक जरा भी खिसक नहीं पाते हो ?
जबरा आँख दिखाता डरकर सिसक नहीं पाते हो ।
लानत तुम पर लज़ा रहे हो धर्मराज आसन को
क्या गिरवी रख छोड़ा तुमने खुद को सिंहासन को?
तुमसे पहले भी कुछ सज्जन बैठे इस आसन पर
जो भारी पड़ते थे खुद ही भारी सिंहासन पर ।
तुमको तो बस उनके पथ पर आँख मूँद चलना है
ना कि बैठे सिंहासन की चक्की में दलना है ।
क्या समझे हो हमको दलने वाले दले जायेंगे
जो आँधी बनकर आये चुपचाप चलें जायेंगे ।
थोड़े दिन का शौर शराबा होता है होने दो
दो दो हाथ समर भूमि में सम्मुख तो होने दो
सत्य जिधर है न्याय उधर है और उधर जय होगी
फिर से कन्दरा में जायेंगे योगी औ मनोरोगी ।
धर्मराज कुछ तो शर्मिन्दा होंगे पुण्य कमी पर ?
सत्य,न्याय के साथ खड़े रहते अपयश न मिलता
अगर आपका मुख थोड़ा सा सही वक्त पर खुलता।
आप रहे खामोश न बल्कि वध के हो सहयोगी
आज नहीं तो और किसी दिन न्याय समीक्षा होगी ।
जब जनता खुद न्याय तुला पर पाप पुण्य तोलेगी
आज रही खामोश जुबां कल चीख चीख बोलेगी ।
सब स्वीकार करोगे अब तक जितने अधम कर्म हैं
क्यूँ दुर्बल के लिये सख्त, क्यूँ बाहुबली नरम हैं ।
क्यूँ आसन से चिपक जरा भी खिसक नहीं पाते हो ?
जबरा आँख दिखाता डरकर सिसक नहीं पाते हो ।
लानत तुम पर लज़ा रहे हो धर्मराज आसन को
क्या गिरवी रख छोड़ा तुमने खुद को सिंहासन को?
तुमसे पहले भी कुछ सज्जन बैठे इस आसन पर
जो भारी पड़ते थे खुद ही भारी सिंहासन पर ।
तुमको तो बस उनके पथ पर आँख मूँद चलना है
ना कि बैठे सिंहासन की चक्की में दलना है ।
क्या समझे हो हमको दलने वाले दले जायेंगे
जो आँधी बनकर आये चुपचाप चलें जायेंगे ।
थोड़े दिन का शौर शराबा होता है होने दो
दो दो हाथ समर भूमि में सम्मुख तो होने दो
सत्य जिधर है न्याय उधर है और उधर जय होगी
फिर से कन्दरा में जायेंगे योगी औ मनोरोगी ।
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