मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

ताजमहल

वुसतुल्लाह खान का ब्लॉग: ‘ताजमहल पाक भिजवा दें, चार पैसे हम भी कमा लें’

आदित्यनाथ किसी शख़्सियत को नहीं बल्कि शायद ऐसी मानसिकता को कहते हैं जो किसी भी व्यक्ति पर सवार हो सकती है.
मसलन एक साहब ने जो अच्छे भले डॉक्टर हैं, एक दिन फ़ोन किया- वुसत साहब आपसे यह उम्मीद नहीं थी.
मैंने बौखलाकर कहा, "क्या उम्मीद नहीं थी?". तो कहने लगे कि, "अच्छा पहले आप यह बताइये कि क्या आप मुसलमान हैं?"
मैंने कहा, "अलहम्दुलिल्लाह बिलकुल पक्का मुसलमान हूं."
फ़िर पूछा, "क्या आप पाकिस्तानी हैं?". मैंने कहा, "इसमें क्या शक है."
तो कहने लगे कि, "अगर आप वाक़ई मुसलमान और पाकिस्तानी हैं तो फ़िर आप हिंदी सर्विस के लिए क्यों लिखते हैं? हिंदी तो हिंदुओं की ज़बान है. आपसे यह उम्मीद नहीं थी."


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अशोक को नहीं जानते हमारे बच्चे

मुझे लगता है कि अगर यह आदित्यनाथ या डॉक्टर साहब मुसलमान की बजाय हिंदू होते तो भी ऐसे ही होते. अब देखिये न ताजमहल भले हिंदुस्तान में सही और 500 वर्ष से सही, मगर ऐतिहासिक मानसिकता से इसका क्या लेना-देना.
इन हालत में यह दलील देना भी फ़िज़ूल ही लगता है कि शाहजहां जब पैदा हुआ तो उसके हाथ में किसी रोहिंग्या की तरह संयुक्त राष्ट्र के हाई कमिशन फॉर रेफ़्यूजीज़ का शरणार्थी आधार कार्ड नहीं था. बल्कि शाहजहां पांच पीढ़ियों से हिंदुस्तानी था. वो तो दफ़्न भी इसी ज़मीन पर है.



‘आईएमएफ़ के कर्ज़े से नहीं बना था ताजमहल’

शाहजहां शाही ख़ज़ाने का पैसा लूटकर ग़ज़नी या स्विट्ज़रलैंड के बैंकों में लेकर नहीं गया बल्कि हिंदुस्तान में ही उसे ख़र्च किया. आगरे में उसकी पत्नी का ताजमहल नामक मज़ार किसी आईएमएफ़ के कर्ज़े से नहीं बल्कि हिंदुस्तान के पैसे से बना.
रही यह बात कि महाराष्ट्र की स्कूली किताबों से मुग़लों को निकाल दिया गया है तो मैं इस पर किस मुंह से आलोचना करूं कि जब मेरा बच्चा चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक आज़म को नहीं जानता.
हालांकि, उसका बाप पाकिस्तान के जिस सरकारी स्कूल में पढ़ता था. उसमें मौर्या राज और अशोक-ए-आज़म के कारनामे पाकिस्तानी इतिहास का हिस्सा थे. अब सिर्फ़ पुस्तकों में सिकंदर-ए-आज़म बाकी है और 90 प्रतिशत बाल जगत सिकंदर-ए-आज़म को मुसलमान समझता है.
जैसे हम अपने पसंदीदा शायर और क्रिटिक फ़िराक़ गोरख़पुरी को मुसलमान समझते हैं. जब पता चला कि उनका नाम तो रघुपति सहाय है, तब भी दिल को तसल्ली देते रहे कि फ़िराक़ नाम का आदमी हिंदू कैसे हो सकता है. फ़िराक़ की वजह से तो आज भी उर्दू साहित्यिक रचना रची हुई है.

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Image captionबहादुर शाह ज़फ़र की मज़ार पर पीएम मोदी

मोदीजी मज़ार पर गए थे

वैसे अंदर से मानो तो हम इस ख़बर पर बेहद खुश हैं कि ताजमहल अब उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत से बाहर कर दिया गया है.
भगवान योगी जी की सरकार क़ायम रखे और उन्हें लंबी उम्र दे. जब वो कल ताजमहल की जगह तेजोमालया मंदिर की नींव का पत्थर रखेंगे तो ताजमहल पाकिस्तान भिजवा दें. उनके सिर से भी बोझ उतर जाएगा और इस बहाने चार पैसे हम भी कमा लेंगे.
मालूम नहीं योगी जी ने मोदी जी से पूछा कि नहीं पिछले महीने रंगून में आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की मज़ार पर क्यों हाज़िरी दी. हो सकता है किसी ने मोदीजी के कान में कहा हो कि बहादुर शाह ज़फ़र बर्मा के मशहूर बादशाह थे. आप उनकी कब्र पर जाएंगे तो बर्मियों को अच्छा लगेगा.
राजनीति में सब चलता है भईया, ताजमहल भी और बहादुर शाह ज़फ़र भी और योगी जी भी.

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