कितनों का है रूजगार गया,कितनों की नौकरियां छूटी ?
सच बात नहीं कोई कहता, सरकारें सारी हैं झूठी ।
बातें विकास की थी जिनकी वादे अच्छे दिन वाले थे
वो ऐसे दिन लेकर आये लंगडें की लाठी भी टूटी ।
ना देवालय, ना शिक्षालय, ना खुलती है धर्मशाला
मगर अब भी जहां रौनक है उसका नाम मधुशाला।
समझने और समझाने में उलझे हो कहां पंडित
समझदारी इसी में है पियो मय का भरा प्याला ।
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