ना सरहद पर सेनानी खुश
ना दादी खुश ना नानी खुश
ना चढ़ती हुई जवानी खुश
ना खूब लड़ी मर्दानी खुश
ना खुश कबीर की बानी है
ना खुश मीरा दीवानी है ।
ना खुश गंगा का पानी है
ना कुछ कहने के मानी है।
अब उज़ड़ी हुई किसानी है
बिगड़ी रंगत सब धानी है।
बस यही सियासत जानी है
मर गया आंख का पानी है।
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