ईमान से मकान का,मकान मुसलमान का
क्या ताल्लुक बताईये,है दीन का जहान का ?
ईमानदार हैं तो क्या गरीब ही बने रहें ?
जालिमों के महल दुर्ग दर्प से तने रहें |
नहीं हैं कम नसीब हम,ना कुदरती गरीब हम
ये मालो जर हमारा है,करेगें अब करीब हम |
जो भी हरामखोर हैं वो दूर हम करेंगे सब
दिया नहीं ख़ुशी से तो मजबूर भी करेगें अब |
ये रौशनी से जगमगाते महल सब हमीं से हैं
बाजार में चहल पहल चुहल गुल हमीं से है |
फिर क्यूँ हमारी बस्तियाँ अंधेरे में ही गुम रहें ?
और क्यूँ तुम्हारी हस्तियाँ नशे में रह के टुन्न रहें ?
हिसाब पाक साफ़ हो, गुनाह कोई ना माफ़ हो
करोगे तुम नहीं तो हम करेगें कोई खाफ हो |
ये देश धर्म जात सब पढ़े खुली किताब अब
हमारा हक़ हमारा है हम लेगें अब जनाब सब |
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