जनवादी लेखक संघ मेरठ جناوادئ لکھاک سنگھ میرٹھ
ये दिन पड़ेगा देखना सोचा नहीं बकैत ने |
भारी हुजूम फिर से जोड़ डाला है टिकैत ने |
ना ये उगलते ही बने ना ये निगलते ही बने,
अच्छी तरह समझ लिया है आज ये करैत ने|
हर आदमी कंगाल हो अम्बानी मालामाल
अबकी बिछाया जाल है ऐसा डकैत ने |
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