जनवादी लेखक संघ मेरठ جناوادئ لکھاک سنگھ میرٹھ
कुछ रोज खिलखिलाता बचपन, कुछ रोज जवानी रहती है
कुछ रोज नया करने कहने की एक कहानी रहती है.
कुछ रोज बुढ़ापे के भी दर्द भरे नग्में गाने पड़ते
कुछ रोज ही धरती पर जीवन की तेज रवानी रहती है .
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