गीतकार साहिर लुधियानवी
एक
अब तक मेरे गीतों में उम्मीद भी थी पसपाई भी
मौत के क़दमों की आहट भी, जीवन की अंगड़ाई भी
मुस्तकबिल की किरणें भी थीं, हाल की बोझल ज़ुल्मत भी
तूफानों का शोर भी था और ख्वाबों की शहनाई भी
आज से मैं अपने गीतों में आतश–पारे भर दूंगा
मद्धम लचकीली तानों में जीवन–धारे भर दूंगा
जीवन के अंधियारे पथ पर मशअल लेकर निकलूंगा
धरती के फैले आँचल में सुर्ख सितारे भर दूंगा
आज से ऐ मज़दूर-किसानों ! मेरे राग तुम्हारे हैं
फ़ाकाकश इंसानों ! मेरे जोग बिहाग तुम्हारे हैं
जब तक तुम भूके-नंगे हो, ये शोले खामोश न होंगे
जब तक बे-आराम हो तुम, ये नगमें राहत कोश न होंगे
मुझको इसका रंज नहीं है लोग मुझे फ़नकार न मानें
फ़िक्रों-सुखन के ताजिर मेरे शे’रों को अशआर न मानें
मेरा फ़न, मेरी उम्मीदें, आज से तुमको अर्पन हैं
आज से मेरे गीत तुम्हारे दुःख और सुख का दर्पन हैं
तुम से कुव्वत लेकर अब मैं तुमको राह दिखाऊँगा
तुम परचम लहराना साथी, मैं बरबत पर गाऊंगा
आज से मेरे फ़न का मकसद जंजीरें पिघलाना है
आज से मैं शबनम के बदले अंगारे बरसाऊंगा |
दो
वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इन्सानों की क़ीमत कुछ भी नहीं
इन्सानों की इज्जत जब झूठे सिक्कों में न तोली जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
दौलत के लिए जब औरत की इस्मत को ना बेचा जाएगा
चाहत को ना कुचला जाएगा, इज्जत को न बेचा जाएगा
अपनी काली करतूतों पर जब ये दुनिया शर्माएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूख के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारादारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फांकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीख न मांगेगा
हक़ मांगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
फ़आक़ों की चिताओ पर जिस दिन इन्सां न जलाए जाएंगे
सीने के दहकते दोज़ख में अरमां न जलाए जाएंगे
ये नरक से भी गंदी दुनिया, जब स्वर्ग बनाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी
जिस सुबह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर मर के जीते हैं
जिस सुबह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं
वो सुबह न आए आज मगर, वो सुबह कभी तो आएगी
वो सुबह कभी तो आएगी|
तीन
साथी हाथ बढ़ाना, साथी हाथ बढ़ाना
एक अकेला थक जाएगा मिल कर बोझ उठाना
साथी हाथ बढ़ाना
हम मेहनतवालों ने जब भी मिलकर क़दम बढ़ाया
सागर ने रस्ता छोड़ा पर्वत ने शीश झुकाया
फ़ौलादी हैं सीने अपने फ़ौलादी हैं बाँहें
हम चाहें तो पैदा कर दें, चट्टानों में राहें,
साथी हाथ बढ़ाना
मेहनत अपनी लेख की रेखा मेहनत से क्या डरना
कल ग़ैरों की ख़ातिर की अब अपनी ख़ातिर करना
अपना दुख भी एक है साथी अपना सुख भी एक
अपनी मंज़िल सच की मंज़िल अपना रस्ता नेक,
साथी हाथ बढ़ाना
एक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरिया
एक से एक मिले तो ज़र्रा बन जाता है सेहरा
एक से एक मिले तो राई बन सकता है पर्वत
एक से एक मिले तो इन्सान बस में कर ले क़िस्मत,
साथी हाथ बढ़ाना
माटी से हम लाल निकालें मोती लाएँ जल से
जो कुछ इस दुनिया में बना है, बना हमारे बल से
कब तक मेहनत के पैरों में ये दौलत की ज़ंजीरें
हाथ बढ़ाकर छीन लो अपने सपनों की तस्वीरें,
साथी हाथ बढ़ाना|
चार
तू हिन्दु बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा ।
अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है
तुझको किसी मजहब से कोई काम नहीं है
जिस इल्म ने इंसान को तकसीम किया है
उस इल्म का तुझ पर कोई इलजाम नहीं है
तू बदले हुए वक्त की पहचान बनेगा ।
मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया
कुदरत ने तो बख्शी थी हमें एक ही धरती
हमने कहीं भारत कहीं इरान बनाया
जो तोड़ दे हर बंध वो तूफान बनेगा ।
नफरत जो सिखाये वो धरम तेरा नहीं है
इन्सां को जो रौंदे वो कदम तेरा नहीं है
कुरआन न हो जिसमे वो मंदिर नहीं तेरा
गीता न हो जिसमे वो हरम तेरा नहीं है
तू अम्न का और सुलह का अरमान बनेगा ।
ये दीन के ताजिर ये वतन बेचने वाले
इंसानों की लाशों के कफन बेचने वाले
ये महलों में बैठे हुए ये कातिल ये लुटेरे
काँटों के एवज रूह-ए-चमन बेचने वाले
तू इनके लिये मौत का ऐलान बनेगा ।
[ जनवादी गीत संग्रह - लाल स्याही के गीत ]

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