मंगलवार, 16 मार्च 2021

6-- शैलेन्द्र के गीत


 

शैलेन्द्र 

                       एक 

तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!


सुबह औ' शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,

तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,

तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है


ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,

ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,

कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है


हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,

यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,

जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है


हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर

मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर

नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है


ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,

टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,

मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है


बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,

न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,

गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!

अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

                      दो 

क्रान्ति के लिए जली मशाल

क्रान्ति के लिए उठे क़दम !


भूख के विरुद्ध भात के लिए

रात के विरुद्ध प्रात के लिए

मेहनती ग़रीब जाति के लिए

हम लड़ेंगे, हमने ली कसम !


छिन रही हैं आदमी की रोटियाँ

बिक रही हैं आदमी की बोटियाँ

किन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँ

लूट का यह राज हो ख़तम !


तय है जय मजूर की, किसान की

देश की, जहान की, अवाम की

ख़ून से रंगे हुए निशान की

लिख गई है मार्क्स की क़लम !

                     तीन 

हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है !


तुमने माँगे ठुकराई हैं, तुमने तोड़ा है हर वादा

छीनी हमसे सस्ती चीज़ें, तुम छंटनी पर हो आमादा

तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है

हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !


मत करो बहाने संकट है, मुद्रा-प्रसार इंफ्लेशन है

इन बनियों चोर-लुटेरों को क्या सरकारी कन्सेशन है

बगलें मत झाँको, दो जवाब क्या यही स्वराज्य तुम्हारा है ?

हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !


मत समझो हमको याद नहीं हैं जून छियालिस की रातें

जब काले-गोरे बनियों में चलती थीं सौदों की बातें

रह गई ग़ुलामी बरकरार हम समझे अब छुटकारा है

हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !


क्या धमकी देते हो साहब, दमदांटी में क्या रक्खा है

वह वार तुम्हारे अग्रज अँग्रज़ों ने भी तो चक्खा है

दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है

हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !


समझौता ? कैसा समझौता ? हमला तो तुमने बोला है

महंगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुँह खोला है

हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है

हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !


अब संभले समझौता-परस्त घुटना-टेकू ढुलमुल-यकीन

हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन

जो रोकेगा वह जाएगा, यह वह तूफ़ानी धारा है

हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !


जनवादी गीत संग्रह -लाल स्याही के गीत 

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