कांतिमोहन 'सोज'
एक
बढ़े मजूर उनके साथ चल रहे किसान !
उठो निशान थामकर वतन के नौजवान !!
उबल रही हैं ख़ून में जूनून की कहानियाँ
नई दिशा दिखा रही हैं वक़्त की निशानियाँ|
हवा-सी घूम-घूमकर घटा-सी झूम-झूमकर
नई ज़मीन तोड़ने निकल पड़ीं जवानियाँ |
सरों पे सबके है कफ़न हथेलियों पे जान !
उठो निशान थामकर वतन के नौजवान !!
नज़र-नज़र उठा रही है लाख-लाख आँधियाँ
नज़र-नज़र गिरा रही है लाख-बिजलियाँ |
जो लाख आँधियाँ उठें जो लाख बिजलियाँ गिरें
कहाँ बचेंगे इस जहाँ में ज़ालिमों के आशियाँ |
बराबरी की नींव पर उठे नया मकान !
उठो निशान थामकर वतन के नौजवान !!
बला का ज़लज़ला है थरथरा रही पहाड़ियाँ
ग़रूरे-इन्क़लाब से दमक रही हैं खाड़ियाँ |
जो खेल जायँ जान पर चमन की आन-बान पर
वो जांसिपर हसीन गुल खिला रही हैं झाड़ियाँ |
क़दम मिलाके चल पड़े मजूर और किसान !
उठो निशान थामकर वतन के नौजवान !!
दो
ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं I
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मँज़ूर नहीं ।।
चलते हैं मशीनों के चक्के इन चौड़े कन्धों के बल से
माटी को बनाते हैं सोना हम अपने जतन से कौशल से
मेहनत से कमाई दौलत को पूँजी ले जाती है छल से
ये राज़ हमें मालूम मगर ये हाल हमें मँज़ूर नहीं ।।
ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं I
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मंज़ूर नहीं ।।
सरमाए का जादू टूट गया मेहनत की हिना रंग लाने लगी
उम्मीद की डाली फलने लगी अरमानों की ख़ुशबू आने लगी
सदियों का अन्धेरा टूट गया आकाश पे लाली छाने लगी
उस भोर के दीवाने हैं हम ये रात हमें मंज़ूर नहीं ।।
ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं I
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मंज़ूर नहीं ।।
ये जंग है जंगे-आज़ादी मज़दूर हैं आज सिपाही भी
बुनियादे-जहाने-नौ के लिए तामीर है आज तबाही भी
हाथों में दमकते हँसिए हैं लो आ पहुँचे हमराही भी
रखते हैं जान हथेली पर झुकना अपना दस्तूर नहीं ।।
ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं I
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मंज़ूर नहीं ।।
ज़ुल्मों की तिजौरी तोड़ के हम हक़ छीन के अपना मानेंगे
नफ़रत से भरी इस दुनिया के नक़्शे को बदल के मानेंगे
मंज़िल के लिए हैं गर्मे-सफ़र मंज़िल पे पहुँच के मानेंगे
पैरों से वो मंजिल दूर सही आँखों से वो मंज़िल दूर नहीं ।।
ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं I
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मंज़ूर नहीं ।।
तीन
अरमानों की खड़ी फ़सल काटेंगे भई काटेंगे !
चले दराँती चाहे हल हो चले दराँती चाहे हल
काटेंगे भई काटेंगे ! काटेंगे भई काटेंगे !
हमने धरती बोई है बीज पसीने का डाला
देखो जलते सूरज ने रंग किया किसका काला ?
फ़सल नहीं इज्ज़त है अपनी कैसे ले लेगा लाला
भई कैसे ले लेगा लाला ?
जो हमसे टकराएँगे धूल सरासर चाटेंगे !
काटेंगे भई काटेंगे अरमानों की खड़ी फसल !
काटेंगे भई काटेंगे चले दराँती चाहे हल !!
पण्डे पल्टन पटवारी अपने सारे देखे-भाले हैं
बगुला-भगत कचहरी के दिल के कितने काले हैं
काले नियम अदालत काली सब मकड़ी के जाले हैं
भई सब मकड़ी के जाले हैं
सीधा अपना नारा है बोएँगे सो काटेंगे !
काटेंगे भई काटेंगे अरमानों की खड़ी फ़सल!
काटेंगे भई काटेंगे चले दराँती चाहे हल !!
चार
बोल मजूरे हल्ला बोल !
काँप रही सरमाएदारी खुलके रहेगी इसकी पोल |
बोल मजूरे हल्ला बोल !
ख़ून को अपने बना पसीना तूने बाग लगाया है
कुँए खोदे नहर निकाली ऊँचा महल उठाया है |
चट्टानों में फूल खिलाए शहर बसाए जंगल में
अपने चौड़े कन्धों पर दुनिया को यहाँ तक लाया है|
बाँकी फौज कमेरों की है, तू है नही भेड़ों का गोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल !
गोदामों में माल भरा है, नोट भरे हैं बोरों में
बेहोशों को होश नही है, नशा चढ़ा है जोरों में |
इसका दामन उसने फाड़ा उसका गरेबाँ इसके हाथ
कफनखसोटों का झगड़ा है होड़ लगी है चोरों में |
ऐसे में तू हाँक लगा दे ला मेरी मेहनत का मोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल !
सिहर उठेगी लहर नदी की, दहक उठेगी फुलवारी
काँप उठेगी पत्ती-पत्ती, चटखेगी डारी डारी |
सरमाएदारों का पल में नशा हिरन हो जाएगा
आग लगेगी नंदन वन में सुलग उठेगी हर क्यारी |
सुन-सुनकर तेरे नारों को धरती होगी डावाँडोल !
बोल मजूरे हल्ला बोल !
पांच
मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!
जितना ही दमन किया तुमने उतना ही शेर हुए हैं हम,
ज़ालिम पंजे से लड़-लड़कर कुछ और दिलेर हुए हैं हम|
चाहे काले कानूनों का अम्बार लगाये जाओ तुम
कब जुल्मो-सितम की ताक़त से घबराकर ज़ेर हुए हैं हम|
तुम जितना हमें दबाओगे हम उतना बढ़ते जाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से हर आफ़त से टकराएँगे !!
जब तक मानव द्वारा मानव का लोहू पीना जारी है,
जब तक बदनाम कलण्डर में शोषण का महीना जारी है |
जब तक हत्यारे राजमहल सुख के सपनों में डूबे हैं
जब तक जनता का अधनंगे-अधभूखे जीना जारी है |
हम इन्क़लाब के नारे से धरती आकाश गुँजाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!
तुम बीती हुई कहानी हो, अब अगला ज़माना अपना है,
तुम एक भयानक सपना थे,ये भोर सुहाना अपना है |
जो कुछ भी दिखाई देता है, जो कुछ भी सुनाई देता है
उसमें से तुम्हारा कुछ भी नहीं वो सारा फ़साना अपना है|
छ:
हम हिन्दू है न मुसलमाँ हैं हम मेहनत करनेवाले हैं ।
हम प्यारभरे गुलदस्ते हैं अमरित के छलकते प्याले हैं ।।
भाई के गले पर भाई की तलवार नहीं गिरने देंगे
भाईचारे की सतरंगी मीनार नहीं गिरने देंगे |
ख़ुद अपने लहू के नदियों से सींचा है जो हमने सदियों से
भारत के चमन पर नफ़रत की बौछार नहीं गिरने देंगे |
इस अमन के हम रखवाले हैं इस चमन के हम रखवाले हैं ।
हम प्यारभरे गुलदस्ते हैं अमरित के छलकते प्याले हैं ।।
पूँजी की अन्धेरी मण्डी में इन्सान नहीं बिकने देंगे
हम दीन-धरम के झगड़े में ईमान नहीं बिकने देंगे |
मेहनत की क़सम ग़ैरत की क़सम इस धरती की अज़मत की क़सम
इस हाट में क़त्लो-ग़ारत का सामान नहीं बिकने देंगे |
इस अमन के हम रखवाले हैं इस चमन के हम रखवाले हैं |
हम प्यारभरे गुलदस्ते हैं अमरित के छलकते प्याले हैं ।।
लानत है जो भाई का ख़ंजर भाई के जिगर को पार करे
लानत है कमेरा एक अगर दूजे पे उछल कर वार करे |
ख़ुद अपने लहू के गारे से तंज़ीम बनाई जो हमने
लानत है हमारा ख़ूँ ही उसे कमज़ोर करे मिस्मार करे |
इस अमन के हम रखवाले हैं इस चमन के हम रखवाले हैं ।
हम प्यारभरे गुलदस्ते हैं अमरित के छलकते प्याले हैं ।।
हम प्यारभरे गुलदस्ते हैं अमरित के छलकते प्याले हैं ।।
हम हिन्दू है न मुसलमाँ हैं हम मेहनत करनेवाले हैं ।।
वो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!

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