शनिवार, 20 मार्च 2021

जनवादी गीत संग्रह-' लाल स्याही के गीत'-9- नचिकेता के गीत



नचिकेता
एक
वह दिन कितना अच्छा होगा, वह दिन कितना अच्छा होगा।

खेतों की मेड़ों से उठती जब बिरहा की मानें होंगी
झूमर पर लय पर कजरी की लहराती मुस्कानें होंगी
जब महक लुटाता फूलों का हर डाली पर गुच्छा होगा।
वह दिन कितना अच्छा होगा,वह दिन कितना अच्छा होगा।

जब नहीं फसल की अंगड़ाई पूंजी से तोली जायेगी
और नहीं सड़क पर देहों की नीलामी बोली जायेगी
हर मां की गोदी में हंसता फूलों जैसा बच्चा होगा ।
वह दिन कितना अच्छा होगा,वह दिन कितना अच्छा होगा।

जब भर भर थाली भात मिलेंगे मेहनत करने वालों को
सपने सच होकर दहकायेंगे रूखे सूखे गालों को
आंखों में गांठें मार रहा खुशियों का जल सच्चा होगा।
वह दिन कितना अच्छा होगा,वह दिन कितना अच्छा होगा।

दो

थपकियां देकर जगाता लहलहाया भोर,
तासा बज रहा है ।
गर्म लोहू में उठा तूफां सा हिलकोर,
तासा बज रहा है।

झोंपड़ी की आंख में है उतर आया खून
थरथराने लगे भय से महल के कानून
दांत भींचे कांपता है गिद्ध आदमखोर।
तासा बज रहा है ।

बिजलियों सी चमचमाती है हलों की नोंक
काट हंसिये की सकेगा कौन जालिम रोक
समय छापा मार मौसम को रहा झकझोर ।
तासा बज रहा है ।

फेफडों में टीसता नासूर सा अनुदान
कत्लगाहों से घिरा इतिहास का आख्यान
चरमराने लगी काले अक्षरों की डोर ।
तासा बज रहा है।

आ रहा संगठित हो सैलाब सा जन ज्वार
लीलने को जुल्म शोषण का घुना आधार
मुक्ति का संघर्ष जारी हुआ चारों ओर ।
तासा बज रहा है ।
तीन

जब जब धरती आसमान की ओर निहारेगी
गीत जन्म लेगा।

घट्टे पड़ी हथेली में जब सृजनशील हरक़त होगी
प्यास पसीने के खारे जल से धरती की क्षत होगी
अथवा भूख अंतड़ियों को कपड़े सा गारेगी ।
गीत जन्म लेगा ।

हरी भरी फसलें थिरकेंगी चूड़ी भरी कलाई सी
पकी हुई बाली की खुशबू गूंजेगी शहनाई सी
ग्राम वधू आकर खेतों की नजर उतारेगी ।
गीत जन्म लेगा ।

नयी सुबह के घावों की जब उभर रही आहट होगी
आंखों की पुतली में मन की गहरी अकुलाहट होगी
और रौशनी अंधकार की गर्द बुहारेगी ।
गीत जन्म लेगा।

चार

हासिल जिनको लोकतंत्र में छत आकाश नहीं
उनका नाम लिखो।

खून पसीना बोकर जिसने फसल उगाई है
घट्टे और बिवाई जिनकी सिर्फ कमाई है
दो रोटी खाने को फिर भी जिनके पास नहीं,
उनका नाम लिखो ।

जिस बचपन के हाथ उगे हैं टपक रहे छाले
मंहगाई जिनके सपनों पर डाल गयी ताले
जिस मिर्ची के जलने से उठ पाती खांस नहीं
उसका नाम लिखो।

जिसको चुभती हैं अपने हाथों की रेखायें
जिनके हिस्से कभी सुबह के रंग नहीं आये
लिखा गया जिनके संघर्षों का इतिहास नहीं
उनका नाम लिखो ।

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